हरिद्वार मसूरी की यात्रा

हरिद्वार मसूरी की यात्रा 


कैम्पटी फाल, मसूरी 
अपनी अल्मोड़ा उत्तराखंड की पहली यात्रा के दौरान ही मुझे व मेरे दोस्त मननु को घुममकडी का वायरस लग चुका था हरे भरे जंगल, बर्फ से ढके हुए पहाड,चीड के पेड़ों की खुशबू, और मस्त बल खाती नदियों ने रातों की नींद उड़ा दी थी और तो और अब तो सपने भी पहाड़ों मे घूमने के ही आने लगे थे हिमालय का अदभुत आकर्षण हमें बार-बार अपनी और खीचने लगा था और हम जब भी मिलते तो बस सारी बातें घूमने पर ही केन्द्रित होती और अंत में घूमने के लिए पैसों का इंतजाम कैसे हो इस एक ही बात पर आकर खत्म हो जाती । नित नयी-नयी योजनाएं बनती और खत्म होती रहती । हम बस एक ही धुन मे रहते की कही से बस पैसों का जुगाड़ हो जाए तो हम फट से घूमने भाग जाएँ । हमने अपने  अन्य खर्च कम कर करने शुरू कर दिए और घूमने के लिए पैसा इकट्ठा करना शुरू कर दिया फिर एक दिन हमारी मंजिल हमें मिल ही गयी और हमारे इस बजट में जो हम दो लोगों ने अपनी संसद में बैठ कर पास किया था केवल हरिद्वार की यात्रा ही की जा सकती है  , या ज्यादा से ज्यादा मसूरी के आसपास ही घूमा जा सकता था कयोंकि हमारे घर से सबसे ज्यादा नजदीक यही पहाड़िया है , जो अंत में 2-0 के भारी बहुमत से पारित हो गया और तारीख (date) फाइनल कर बैग पैक हो गए ।
               
                         गाजियाबाद से हरिद्वार की दूरी 185 किलोमीटर है  दिल्ली महाराणा प्रताप बस अड्डे से हरिद्वार के लिए सीधे बस है जो मोहन नगर गाजियाबाद होकर जाती है यात्रा शुरू हो गई मेरठ , खतोली , मुजफ्फरनगर, पुरकाजी , रूडकी , रूडकी से एक रास्ता छुटमलपुर होकर देहरादून चला जाता है जो ज्यादातर सीधा मसूरी जाने वाले टूरिस्ट इस्तेमाल करते है व दूसरा सीधा हरिद्वार ऋषिकेश ।
हरिद्वार जैसा कि नाम से प्रतीत होता है हरि यानि भगवान और द्वार मतलब दरवाजा ये नाम शायद इसलिए ही पडा की हरिद्वार से ही पहाड़ों का रास्ता शुरू होता हैं और यही से उत्तराखंड के चारों पवित्र धामो गंगोत्री, यमुनोत्री, बदरीनाथ, केदारनाथ के रास्ते जाते है तो एक तरह से हरिद्वार एक द्वार
की तरह काम करता है ।
                           उत्तराखंड मुख्य दो भागों में विभाजित है
गढवाल और कुमाऊँ । और चारों पवित्र धाम गढवाल मंडल में आते हैं इस तरह गढवाल मंडल के मुख्य द्वार की तरह काम करता है हरिद्वार , यदि हम नेशनल हाइवे 58 पकडते है तो सीधा हरिद्वार और यदि नेशनल हाइवे 24 पकडते है तो सीधा काठगोदाम जो एक तरह से कुमाऊँ मंडल में हमारा प्रवेश द्वार है वहां नैनीताल, अल्मोड़ा, रानीखेत, पिथौरागढ़, मुक्तेशवर, कौसानी, मुनस्यारी आदि मुख्य पर्यटन स्थल है हम लोग तो सीधा NH 58 पकडकर हरिद्वार पहुँच गए  हर की पौडी जो माॅ गंगा की मुख्य धारा को रोककर कुछ पानी एक पतली धारा के रूप मे लाया गया है जिसका बहाव इतना तेज है कि आप उस में अपना पैर नहीं टेक सकते है  शाम के समय यही माता गंगा की आरती होती है जिसको देखने व आरती में शामिल होने के लिए हजारों की संख्या में देश ही नहीं वरन विदेशी लोग भी भारी मात्रा में शामिल होने के लिए हरिद्वार की यात्रा करते हैं एक अलग ही विहंगम नजारा होता है चारों और से आती घंटे घड़ियालो की टन टन की आवाज और लाखों की संख्या में दीप प्रज्वलित कर उन्हें पानी में छोड़ा जाता है जिसका प्रतिबिम्ब पानी मे पडता है तो ऐसा प्रतीत होता है जैसे तारे जमीन पर आ गये हो । चारों ओर से हर हर गंगे ,जय माॅ गंगे के नारों की गूँज कानो में मिश्री सी घोलती रहती है मन एक दम से शांत हो जाता है दिलों में अजीब सी खुशी भर जाती है और मन माॅ गंगा के प्रति अपार श्रद्धा से भर जाता है एक अलग ही आध्यात्मिक अनुभव होता है जो शायद ही कहीं आपको महसूस हो,
                       स्नान ओर आरती के बाद बारी थी पेट पूजा की तो यहाँ माँसाहारी को छोड़कर अन्य सभी प्रकार के खाने की वयवस्था है हमने खाना खाया और थोड़ी देर बाजार में घूमने के बाद जल्दी ही बिस्तर पकड लिया थकान थी ही नींद ने शीघ्र ही हमें जकडा तो सुबह ही जाकर आखें खुली ।
          सुबह जल्दी से उठकर नहाने के बाद जल्दी से नाशता किया क्युकि मंशा देवी और चंडी देवी मंदिर थोड़ा ऊपर जाके पहाड़ी पर है और दोनों जगह जाने पर हमारा आज का दिन भी हरिद्वार में ही लग जाना था और हमारा आज का दिन मसूरी घूमने का रात में ही निर्धारित हो गया था एक सज्जन ने रात कुछ ज्यादा ही तारीफें कर दी थी मसूरी की तो दिल बेताब था मसूरी देखने को हरिद्वार से हम सीधे देहरादून होते हुए मसूरी को निकल लिए ।हरिद्वार से देहरादून 53 किलोमीटर  दूर है और देहरादून से मसूरी 32 किलोमीटर है और समुद्र तल से ऊचाई लगभग 2000 मीटर,,,,,  6600 फुट है दून को पार करते ही जैसे ही मसूरी की चढ़ाई शुरू हुई और मसूरी के पहले दर्शन हुए तो समझ आ गया कि मसूरी को पहाड़ों की रानी कहकर क्यू बुलाते हैं इतनी ऊचाई पर मसूरी को देख कर हम अत्यंत रोमांचित हो रहे थे टेढी मेढी और  सर्प सी बल खाती सड़कों पर सफर का मजा तो आ रहा था पर कभी-कभी खाई के दर्शन करने पर दिल जोर से धडक जाता था मसूरी के पास आते-आते मौसम अधिक ही सुहाना हो गया था ठंड बढ गई थी और बादलों ने पहाड़ों से नीचे डेरा डाल दिया था मसूरी पहुँच कर लाइब्रेरी चौक पहुँच कर कुछ देर चाय के साथ मसूरी से देहरादून की सुंदरता को निहारते ,तो कभी मसूरी की सुंदरता को । माल रोड पर ही लाइब्रेरी चौक है जो एक चौराहा है यही  से एक रास्ता कैम्पटी फाल को जाता है जो एक अत्यंत ही खुबसूरत झरना है एक माल रोड को जो गनहिल और लाल टिब्बा की तरफ जाता है एक रास्ता नीचे देहरादून की तरफ जाता है अब तो माल रोड पर गाडी ले जाने पर टैक्स देना पड़ता है पर उस समय ऐसा नहीं था माल रोड पर भीड़ बहुत रहती है और होटल भी महंगे है तो हमने लंढौर , लाल टिब्बा की तरफ जाकर रूकना अच्छा लगा खैर हमें जल्द ही कम बजट में एक साफ सुथरा और अच्छी सुविधाओं वाला होटल मिल गया जहां से एक खूबसूरत नजारा दिख रहा था होटल वाले से ही हमने आप पास की सारी जानकारी ले ली थोड़ा रेस्ट करने के बाद शाम को गनहिल घूमने का प्रोग्राम बनाया । गनहिल जो की मसूरी की दूसरी सबसे ऊंची चोटी है और ऊपर एक समतल जगह है और उस पर पहले एक तोप हुआ करती थी जो एक नियत समय पर चलाई जाती थी जिससे लोग अपनी घड़ियाँ मिलाया करते थे और अब वहाँ दूरबीनें लगी हुई है जहाँ से पर्यटकों को चारों ओर के सुन्दर नजारे दिखाते हैं फिर हम केमलस बैक रोड़ पर छिपते हुए सूर्य का आनंद ले कर माल रोड पर आ गये और माल रोड पर आवारगी में घूमते-घूमते कब रात के 9 बज गये पता ही नहीं चला । खाना माल रोड पर ही खा लिया था अभी थोड़ा और घूमने का मन था रात को मसूरी से देहरादून को देखना बहुत ही सुन्दर नजारा होता है ऐसा लगता है जैसे सारे के सारे तारे जमीन पर उतर आये हो पर धीरे-धीरे बढ रही ठंड हालत खराब कर रही थी और होटल की याद दिला रही थी अगले दिन का प्रोग्राम फिक्स हो गया था कैम्पटी फाल के लिए तो  हमने होटल वाले से बोला और उसने हमारे साथ ही दो और यात्रियों के साथ एक वैन अगली सुबह कैम्पटी फाल के लिए बुक कर दी और हम नींद के आगोश मे चले गये ।
                                     अगली सुबह होटल वाले ने ही नींद से जगाया तो सुबह का बहुत ही सुन्दर नजारा सामने था सूरज आसपास की पहाडियों पर अपनी आभा बिखेर रहा था और हल्के कोहरे से अलसायी सी सुबह को चीरने का भरसक प्रयास कर कर रहा था जहाँ पहाड़ों पर धूप पड रही थी वो पहाड़ियाॅ सुंदर नजारा पेश कर रही थी हमने चाय का आर्डर दे दिया और आज नहाने का प्रोग्राम कैन्सिल कर दिया कि आज कैम्पटी फाल में ही नहाएंगे जो मसूरी से लगभग 15 किलोमीटर दूरी पर है और पेट पूजा भी वही करेंगे कुछ ही देर में गाड़ी वाला आ गया जिसने बताया कि अग्रेंज यहाँ पर कैम्प  लगाकर टी पार्टी (केम्प +टी) किया करते थे इस लिए ही इस जगह का नाम कैम्पटी फाल पड़ा है हम मसूरी से यमुनोत्री मार्ग पर नीचे उतरने लगे और कुछ देर बाद हमें सड़क से ही कैम्पटी फाल के प्रथम दर्शन हुए दूध की एक सफेद पतली सी धारा ऊपर से नीचे बहती हुई प्रतीत हो रही थी हमने गाड़ी रुकवा ली और सुन्दर नजारे को देखते रहे और फिर आगे बढ़ गये अब हम ठीक कैम्पटी फाल के पास थे गाड़ी छोड़ दी थी और सड़क के नीचे उतरने लगे रास्ते के दोनों ओर दुकानें थी जो हमें बार बार कुछ ना कुछ खरीदने का निवेदन कर रहे थे फाल पर पहुँचे तो सुन्दर नजारा सामने था हम काफी देर तक कैम्पटी फाल में नहाते रहे अब जोर की भूख लग रही थी तो दही के साथ पराठो का आनंद लिया और वापसी के लिए गाड़ी पकड ली ।         
 अब हमारा अगला टारगेट था लाल टिब्बा , और यही पर मसूरी की सबसे ऊंची चोटी है लाल टिब्बा हमारे होटल की तरफ ही था क्युकि हम लंढौर , जो मसूरी में ही लाल टिब्बा की तरफ है वहीं रुके हुए थे तो हमने अगले दिन का प्रोग्राम लाल टिब्बा का रख लिया और शाम फिर माल पर गुजार दी ।और अगले दिन सुबह सुबह ही लाल टिब्बा की तरफ पैदल वाॅक करते हुए चल दिए । कुछ दूर चलने से ही साँस फूल गयी और सौ की स्पीड घटकर कुछ ही देर में दस बीस की रह गयी अब बैठकर आराम करते व फिर चल देते रास्ते में आसमान को छूते विशालकाय चीड के पेड़ों की सघन छाया और हवा में चीड की मदहोश कर देने वाली खुशबु जो हमारी तेज चलती सांसो के साथ अन्दर जा रही थी और हम बस अपनी सारी थकान भूलकर यही देखते जा रहे थे कि सबसे विशालकाय चीड का पेड़  कौन सा है बिलकुल शांत माहौल में पँछी अपनी मीठी आवाज घोलकर ही शान्ति को भंग करते और कोयल जब भी बोलती तो एक मिश्री सी कानों में उड़ेल देती यहाँ पर एक छत डालकर एक वाच टावर भी बना है जहाँ दूरबीनों से आस पास के लोकेशन को यात्रियों को दिखाया जाता है पर हम तो ठहरे प्रकृती प्रेमी तो ज्यादातर समय शुकून से बैठकर ही गुजारा और प्रकृती का भरपूर आनंद लिया ।उस समय लाल टिब्बा आज की तरह नहीं था अब तो पेड़ों को काटकर कालोनियों को बसा दिया गया है उस समय बस एक दूरसंचार का टावर हुआ करता था और कुछ स्टाफ।इतने विशालकाय चीड के पेड़ की दोनों तरफ से दो आदमी हाथ डाले तो भी हाथों में ना आये अब जब भी वहाँ जाता हूँ बस वो नजारा याद आता है कितने पेड़ वहाँ पर काट दिये है और मन उन पेड़ों को ना पाकर उदास हो जाता है
गन हिल से मसूरी का नजारा 

खैर हम दोपहर बाद वापिस आ गये और शाम को ऋषिकेश के लिए बस पकड ली जो हमारी एक भयंकर भूल साबित हुई हम रात में ऋषिकेश तो आ गये पर वहाँ से हमें हरिद्वार की बस नहीं मिली हमारा प्रोग्राम ये था कि रात में ही हरिद्वार से बस पकड लेंगें गाजियाबाद दिल्ली के लिए और सुबह घर पर होंगे , ऋषिकेश बस अड्डे पर ही हमको 12 बज गये अब ऑटो ही एक मात्र उपाय था पर वो भी वक्त की नज़ाकत को पहचान कर तीन गुना से भी ज्यादा पैसे माँग रहाँ था हम बार-बार उससे मना करते और वो कुछ देर इधर-उधर घूम कर हमारे धैर्य की परीक्षा लेता और हमें अपने  इरादे से हिलता हुआ ना देखकर एक नये आफर के साथ फिर आ जाता ।
                     जिंदगी हमें आज एक नया सबक दे रही थी कि तभी दो तीन युवक और आ गये जिन्होने अपने जूते के फीते बाँध कर बैग के बाहर लटकाये हुये थे उन के हाव भाव से ही  पता चल रहा था कि वे काफी थके हुए थे उनकी भाषा बता रही थी कि वो भी हमारे आस पास के है आटो वाला नये शिकार देखते ही आ गया पर किराए को लेकर बात नहीं बनी ।उन्होंने हमसे बात की कि मिल कर हाफ-हाफ में आटो कर लेते है  उन्होंने हमें बताया कि वो बदरीनाथ केदारनाथ जी से आयें है जो यहाँ से 300 किलोमीटर से भी दूर है हमने आश्चर्य से पूछा कि क्या रास्ता समतल ( प्लेन) है या सारा पहाड़ी है तो उन्होंने बताया कि सारा ऊपर पहाड़ ही पहाड है हम तो मसूरी की पहाडियों पर जाकर ही अपने आप को सर एडमंड हिलेरी और तेनजिग नोरगे समझ बैठे थे बस यही से उनको देखकर हमारी  हिम्मत भी बढ गई घूमने की , खैर वो कुछ ही देर में रिक्वेस्ट मोड में आ गये और हम भी ये सोचकर कि हमें उनसे रास्ते भर बात कर नालेज मिलने वाली थी 60 -40 में सहमत हो गये आटो ऋषिकेश से हरिद्वार के लिए चल पड़ा और साथ ही चल पड़ा हर साल गर्मियों के मौसम में पहाड़ों में  घूमने का सिलसिला । घुममकडी का वायरस अब पूरी तरह से हमारे खून मे घुस चुका था और गर्मियों के आते ही  जोर पकडने लगता था हमें मई जून का बेसब्री से इंतजार रहने लगा । हमने रास्ते भर चारों धामों के बारे मे पूछ-पूछ कर उनको पका दिया और मन ही मन अगली बार चारों धामों की यात्रा की शुरुआत करने के निर्णय लेकर उन से विदा ले ली ।
                                 
 तो दोस्तों अगली बार बात होगी हमारी चारों धामो में से एक गंगोत्री की तब तक शुभ रात्रि सब्बा खैर । आपको मेरा ये लेख कैसा लगा कमेंट बाक्स में अवश्य बतायें आप के कमेंट्स ही मुझे लिखने की नयी ऊर्जा देंगे ।
        धन्यवाद
                   B.singh


  1. मेरी अल्मोड़ा उत्तराखंड की पहली यात्रा के लिए नीचे            दिए लिंक पर क्लिक करे
             https://traveladrug.blogspot.com/2018/06/blog-post.html?m=1

2.गंगोत्री गोमुख यात्रा
https://traveladrug.blogspot.com/2018/10/1.html?m=1

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