त्रियुगी नारायण यात्रा
त्रियुगी नारायण जी की यात्रा
त्रियुगी नारायण जी की यात्रा के बारे में बहुत अधिक लोग नही जानते हैं पर जो जानते है वो इस जगह और इस यात्रा के महत्व से भली-भाँति परिचित है अभी तक कम ही जाने जानी वाली ये जगह अचानक तब मिडिया की सुर्खियों में आ गई जब अफ्रीका में हीरों के बडे व्यवसायी गुप्ता बंधुओं ने शादी के लिए त्रियुगी नारायण जी में शादी के लिए वहाँ के प्रशासन से अनुमति माँगी ।जोकि एक हाई प्रोफाइल शादी होने की वजह से बहुत सारे वी आइ पी लोग और विदेशी मेहमानों के इस में शामिल होने, उनके रूकने और कम जगह और सुरक्षा व अन्य कारणों के चलते बाद औली में सम्पन्न करायी गयी । त्रियुगी नारायण जी रात दिन इस शादी के समापन तक मीडिया की सुर्खियाँ बटोरता रहा ।पहली बार शायद इतनी बडी संख्या में लोगों को पता चला कि त्रियुगी नारायण ही वो जगह है जहाँ पर भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह रचाया था । और इसी वजह से इस जगह की महत्ता और पवित्रता को ध्यान मे रखते हुए गुप्ता बंधु भी अपने बच्चों की शादी यहाँ करना चाहते थे ताकि भगवान शिव और माता पार्वती का आशीर्वाद भी बच्चों को विवाह के साथ ही मिल जायँ ।
मैनें केदारनाथ जी की यात्रा तो कई बार की है तो इस बार साथ में त्रियुगी नारायण जी की यात्रा का प्रोग्राम भी पहले ही फिक्स कर लिया था 1 सितम्बर 2019 की रात में हम केदारनाथ जी के दर्शन कर गौरीकुण्ड वापस आ चुके थे त्रियुगी नारायण जी तक गाडी पहुँच जाती है तो पैदल चलना ही नही था तो सभी थकान के कारण कोई जल्द बाजी के मूड में नही था सुबह के सात बज चुके है सभी जग भी गये है पर बिस्तर छोडने के मूड में कोई नही है मैने भी सुबह के समय गौरीकुण्ड को देखने के चक्कर में एक बार बिस्तर छोड़ कर कुछ देर होटल की छत से नजारा देखकर वापस बिस्तर पकड लिया है केदारनाथ जी के दर्शन को यात्री सुबह 5 बजे से ही चलना शुरू कर देते है तो यहाँ का बाजार भी सुबह जल्दी खुल जाता है अब सभी को चाय की तलब लगी है पीतम चौहान जी जो कल रात में हिम्मत हार गये थे सब से पहले फ्रैश होकर होटल से बाहर चलें गये है और सुबह का आनंद ले रहे है होटल की छत से, हम भी फ्रैश होकर चाय के इंतजार में ही थे कि पीतम चौहान जी चाय के साथ-साथ पकौडों का भी इंतजाम कर लाये वजह शायद उनकी भूख थी कयूकि रात थकान व अन्य चीजों के खाने की वजह से खाना नही खाया था। उनके हाथ में पकोडो के पैकेट पर सभी ऐसे टूटे जैसे कई जन्म के भुककड हो । चाय पकौडे पेलकर होटल से विदा ली और गौरीकुण्ड को नमस्कार कर सोन प्रयाग वापसी के लिए जीप पकड ली जहाँ हमारी गाडी पार्किंग में खडी थी । फिर से वही 20 रूपये प्रति व्यक्ति। दिल्ली एन सी आर वाले पहले दिल्ली से ॠषिकेश फिर देवप्रयाग--श्रीनगर(गढवाल)----रूद्रप्रयाग--गुप्तकाशी--फाटा--सोनप्रयाग आ सकते है छोटी मोटी जो भी जानकारी थी वो जीप वाले से ही जुटा ली,,मतलब कितनी दूरी है, रास्ता कैसा है, रास्ते में क्या-क्या फैसलेटी है दुकानें हैं या नहीं है सोन प्रयाग से 12 ही किलोमीटर है तो आना जाना 24 किलोमीटर है और श्रीनगर से गाडी का टैंक फुल करवा लिया था तो गाडी के ईंधन का सोचना नही था अपने टैंक में कुछ ईधन उठते ही डल गया है तो चिंता वाली कोई बात ही नही है सोनप्रयाग पार्किंग से गाडी निकाल ली है पैर को एक बार फिर से धोकर बेनडेज लगा दी है बस पार्किंग से जरा सा चलते ही त्रियुगी नारायण जी का बोर्ड लगा है गाडी फिर एक बार भक्ति संगीत के साथ एक नये गंतव्य की ओर अग्रसर है ये सभी के लिए एक अनदेखी जगह है तो उसका रोमांच भी है और वो इसलिये ज्यादा भी है कि वहाँ शिव और पार्वती का विवाह हुआ है सोचकर ही मन प्रफुल्लित है कि हम एक बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान के दर्शन के लिए जा रहे है अभी ख्यालों में गुम ही थे और जरा सा ही चले थे कि एक सज्जन बहुत ही गुस्से में गाडी की तरफ झपटे ,,,मैने गाडी रोक दी । उनहोंने ले-देकर कोई बीस बातें हमे सुना दी। और हमारे प्लेन वाला होने का ताना भी मार दिया जोकि उनहोंने हमारी गाडी का न* यू पी 16 देखकर दिया था ।हुआ यूं कि भाई साहब अपनी गाडी को सडक पर बहते पानी से धो रहे थे शायद रोज धोते होंगे सितम्बर में यात्रा कम हो जाती है और उन में से भी त्रियुगी नारायण जी जाने वाले और भी कम ।तो भाई साहब बडे ही इम्तिमिनान से सडक पर बैठ कर गाडी के टायर धो रहे थे निश्चित थे कि कोई नही आयेगा पर उन्हे क्या पता था कि एक मूर्ख प्राणी बिल्कुल नजदीक से गुजरेगा ।भाई साहब का गुस्सा भी जायज था कोई सुबह-सुबह बर्फ से ठंडे पानी से आपसे होली खेल जाय तो गुस्सा तो आयेगा ही । जब उनहोंने सारा गुस्सा निकाल लिया तो मैनें भी एक हल्की सी मुस्कान बिखेरते हुए मांफी माँग ली। भाई साहब को शायद हमसे ऐसी उम्मीद नहीं थी ।गुस्सा एकदम शांत ऐसा लगा लगा जैसे आग पर किसी ने एक जग बर्फ सा ठंडा पानी उडेल दिया हो और आग एकदम से बुझ जाय ।और वो गाडी देखकर चलाया करो भाई जी बोलकर वापिस हो लिए और मैने गाडी आगे बढा दी।सोनप्रयाग अब नीचे छूटता जा रहा था और हम पहाडी पर ऊपर की और चढते जा रहे थे अभी कुछ ही आगे बढे थे कि सडक किनारे एक घर से निकल कर एक 65-70 साल के एक बुजुर्ग ने गाडी को हाथ दे दिया जो हाथ मे छाता और माथे पर तिलक लगाये हुए थे अभी थोड़ी देर पहले हुए हादसे की वजह से कोई भी गाडी रोकने को इच्छुक नही था पर मैने गाडी रोक दी और बुजुर्ग अंकल जी को गाडी में बिठा लिया ।पहाड मे लिफ्ट मागने और देने का महत्व को आप उनकी कठिन दिनचर्या और संघर्षों को देखकर ही लगा सकते है । अंकल जी वहाँ के लोकल थे और त्रियुगी नारायण जी ही जा रहे थे अब सडक के दोनों और घना जंगल स्टाट॔ हो चुका था और साथ में अंकल जी से बातें भी शुरू हो गयी थी और मै उनसे वहाँ के जंगल के बारे में भी जानकारी ले रहा था ये जंगल मुझे जडी बूटियों वाला लग रहा था । यहाँ का फलोरा फयूना कुछ अलग ही है बारिश का मौसम भी अभी गुजरा है और झाडियाँ भी काफी बढी हुई है और कुछ अजीब से पौधे दिख रहे है अभी कुछ दिनों पहले ही मैंने यू टयूब पर तेलिया कंद के बारे में एक विडियो देखी थी और अब सडक के किनारे जंगल में वो ही वनस्पति देख रहा था और अकल जी से उस पौधे के बारे में जानकारी ले रहा था वो तेलिया कंद था या कुछ और पर जो विडियो में था उससे 100% मिल रहा था जिसके कुछ फोटो और एक विडियो भी मैने यादगार के लिए बना लिया ।लोकल लोग उसे किसी और नाम से बुलाते है जिसके तने पर ब्लैक स्पाॅट किसी सर्प की स्किन के जैसे दिखते है ।
यहाँ बरसात अच्छी खासी मात्रा में होती है अभी बरसात का मौसम लगभग खतम होने को है तो सडक के साथ बिच्छु घास या कंडाली भी बहुत खडी हुई है और वो किसी को लगे ना इसलिये उसे सडक के पास से काट कर साफ किया जा रहा है क्योकि इसके छु जाने पर बहुत ही तेज पीडा होती है बिच्छू के डकं मारने के समान, इसलिये ही इसे बिच्छू घास बुलाते हैं पर स्थानीय लोग इसको उबाल कर इसकी सब्जी भी बनाते है जो बहुत पौष्टक भी होता है हमारे साथ एक बुजुर्ग होने से हम उनके बहुत से ज्ञान और अनुभवों से रूबरू हो रहे है हम उन वनस्पतियों के लोकल नामों और उनके प्रयोग से भी परिचित हो रहे थे जोकि मेरा उन्हे बिठाने का मुख्य उद्देश्य भी था और अभी सब महसूस कर रहे थे कि मैने उन्हें बिठा कर कोई गलती नहीं की है कयूकि अब मुझ से ज्यादा सवाल अंकल जी से वो कर रहे थे । मैं जंगल के बीच से गाडी ड्राइव करने का आनंद ले रहा था और अन्य लोग अंकल जी से त्रियुगी नारायण जी के इतिहास को खंगालने और जानने में लगे हुए थे ये जंगल भी मुझे बहुत कुछ चोपता के जंगलो जैसा ही लगा।,,,,दूर तक ना कोई गाडी, ना कोई आवाज़ ,आपकी अपनी गाडी के सिवा, कभी-कभी गिरते झरने आपको गाडी रोकने पर मजबूर कर सकते है एक बार तो नहाने का प्रोग्राम भी बना पर अंकल जी को वेट करना पडेगा इस लिये त्याग दिया इस 12 किलोमीटर में मुश्किल से कोई गाँव पडा होगा,,चीड और बाँझ के इस जंगल में पानी के झरने तो आते कई जगह मिले पर बर्फ कहीं भी पडी हुई दिखाई नही दी तो शायद ये बरसाती झरने है या पहाडियों की चोटी पर कहीं बर्फ है जो दिख नही रही है अंकल जी के साथ समय अच्छा गुजरा और जानकारी भी काफी मिल गई और एक छोटी सी जगह आ गये है त्रियुगी नारायण । एक छोटा सा प्यारा सा गांव ।यही हमारी मंजिल थी बस दो चार गेस्ट हाउस नजर आ रहे थे ।गाडी एक जगह पार्क कर दी और उतरकर चाारों और के नजारे का आनंद लिया । इस छोटी-सी जगह में एक ही शानदार और बढिया होटल कह लो या गेस्ट हाउस था ।वो था GMVN का गेस्ट हाउस । बाकी सब कुुछ हमारी तरह साधारण । मंदिर तो कहीं नजर नही आ रहा था नजरे दौडाई पर दिखाई कुछ नही दिया । पास में ही बोर्ड लगा है त्रियुगी नारायण जी मंदिर दूरी 50 मीटर ।
अब किसी से पूछ लेना ही उचित समझा । गाडी से जरूरी सामान व कपडे निकाले तब तक साथ वाले अंकल जी भी आ गये जो गाडी से उतरकर किसी से बातचीत करने में लग गये थे ।पहाड में कई बार 50 मीटर भी 500 मीटर हो जाता है पर यहाँ पर ये एकदम सही निकला ।मंदिर हम से 50 मीटर ही दूर था पर कुछ आसपास की दुकानें और मकान उंचे पर होने और मंदिर कुछ नीचे पर होने की वजह से दिख नही रहा था ।अब हम मंदिर आ गये थे तो काफी देर तक मंदिर की वास्तु कला, और भौगोलिक स्थिति व इतिहास जानकारी लेते रहे । मन एकदम शांत और आनंदित था कि हम एक बहुत ही महत्वपूर्ण और खुबसूरत स्थान पर है देखकर ही प्रतीत हो रहा था कि मंदिर काफी प्राचीन है और लगभग केदारनाथ जी की शैली में बना हुआ है ।
और ये इस जगह का जादू ही है कि आप एकदम शांत और एकचित और एकाग्र हो जाते है ।अब बारी थी त्रियुगी नारायण जी मंदिर को अंदर से देखने व जानने की व पूजा की तो उसके लिए स्नान जरूरी था मंदिर प्रांगण में चार कुंड है ब्रहम कुंड जल आचमन के लिए, विष्णु कुंड व रूद्र कुंड स्नान के लिए ,विष्णु कुंड जिनमें एकदम साफ निर्मल जल था पर उसमे कुछ सिक्के पडे हुए थे और मेरा मन उन सिक्को की वजह से उसमें स्नान के लिए गंवारा नहीं कर रहा था उसमें से निकलकर पानी मंदिर के बिल्कुल सामने वाले बडे रूद्र कुंड में गिर रहा था जो लगभग 8×8 फुट चोडा और 4 फुट के आसपास गहरा था पर उसमे गिरने वाला पानी इकट्ठा नही होता वो गिरने के बाद नीचे जमीन में ही कहीं जा रहा था मुझे स्नान के लिए यही सबसे मुफीद लगा पर जरूरत थी एक मग या बरतन की तो एक दुकानदार सज्जन ने हमें नहाने के लिए एक जग भी उपलब्ध करा दिया ।बस फिर क्या था फटाफट कपडे उतार मै नहाने के लिए कुंड में उतर गया पर यहाँ हल्की फिसलन थी पर मै एक जगह पैर जमा कर कुंड में गिरते हुए पानी के सामने पैर जमा कर खडा हो गया।पानी बर्फ की तरह एकदम ठंडा था जिसमें स्नान के लिए हिम्मत की जरूरत थी ।मैने आँखे बंद की और तीनों देवों को याद किया और इस पावन जगह पर बुलाने के लिए धन्यवाद दिया फिर एक के बाद एक दस बीस जग शरीर पर उडेल दिये सच पूछो तो ये स्नान अब मुझे आनंदमय लग रहा था कल की केदारनाथ जी की जो थकान थी वो एक ही पल में गायब हो गई थी और मै हर एक दो मिनट के बाद दस बीस जग फिर से शरीर पर डालकर प्रभु को इस सुन्दर जगह पर स्नान के लिए धन्यवाद देता ।फिर सभी ने एक कर स्नान किया और सभी ने इस बात को महसूस किया कि केदारनाथ जी की पैदल यात्रा की वजह से शरीर में जो थकान और दर्द था वो जादू की तरह गायब हो गया था और अब सभी मे एक नयी उर्जा बह रही थी ।स्नान के बाद कपडे पहनने के बाद पुजारी जी ने ब्रहम कुंड के जल से हमे आचमन कराया और पूजा के लिए धर्म शिला पर बिठाया । मंदिर के पास ही वो शिला है जहाँ ये अद्धभुत विवाह समपनं हुआ था । जहाँ उनहोंने हमे हमारी पूजा के दौरान भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह की रोचक कहानी सुनायी कि भगवान ब्रहमा जी ने पुरोहित की भूमिका निभाते हुए भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह कराया और भगवान विष्णु जी ने माता पार्वती के भाई के रूप में सभी कर्तव्यो को पूर्ण किया । इस मंदिर की एक विशेष विशेषता एक सतत आग है, जो मंदिर के अग्नि कुंड में जलती है। माना जाता है कि लौ दिव्य विवाह के समय से जलती आ रही है। ऐसा भी कहा जाता है की ये अग्नि तीन युगों से लगातार जल रही है। तीन युगों(त्रि-युग) से लगातार जल रही है इस अग्नि और भगवान नारायण जी वजह से ही इस जगह का नाम त्रियुगी नारायण पडा है । सतयुग में शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ तो त्रियुगी नारायण मंदिर को सतयुग कालीन मानते हैं और केदारनाथ जी के मंदिर को द्वापर कालीन ।अतः त्रियुगी नारायण जी मंदिर को सबसे प्राचीन मानते है और इस जगह का प्रमाण पुराणों में भी है ।यहाँ आने वाले यात्री हवनकुण्ड की राख को अपने साथ ले जाते हैं और मान्यता हैं कि यह उनके वैवाहिक जीवन को सुखी बनाएगी। मन्दिर के सामने ब्रह्मशिला को दिव्य विवाह का वास्तविक स्थल माना जाता है।
मन्दिर के अहाते में एक खुटा नुमा पत्थर है जिससे भगवान शिव को विवाह में मिली गाय को बांधा गया था और मंदिर प्रांगण में ही सरस्वती गंगा नाम की एक धारा का उद्गम हुआ है। इससे इसके पास के सारे पवित्र सरोवर भरते हैं। सरोवरों के नाम रुद्रकुण्ड, विष्णुकुण्ड, ब्रह्मकुण्ड व सरस्वती कुण्ड हैं। रुद्रकुण्ड में स्नान, विष्णुकुण्ड में मार्जन, ब्रह्मकुण्ड में आचमन और सरस्वती कुण्ड में तर्पण किया जाता है । और समस्त दैवी देवताओं ने यहाँ स्नान किया और विवाह में भाग लिया । इसलिए इन कुंडों का भी यहाँ विशेष महत्व है। हम सब भाव विभोर होकर एकदम शांत होकर सुन रहे थे जीवन में पहली बार किसी पूजा में इतना आनंद आ रहा था ।एक चीज यहाँ और अच्छी थी कि कोई दक्षिणा वगैरह के लिए कोई प्रेशर नही है आप अपनी श्रद्धा से कुछ भी दान कर सकते है पुजारी जी बहुत ही सुन्दर वर्णन के साथ त्रियुगी नारायण जी की महत्ता हमे समझायी और अन्दर मंदिर में तीनो युग से प्रज्वलित अग्नि कुंड के दर्शन व पूजा को समझाया । फिर हमने मंदिर के अन्दर प्रवेश किया और एक अग्नि कुंड के दर्शन किये जिसमें हमनें कुछ मंत्रों के साथ जौ के दाने व कुछ लकडीयां भी अर्पण की ।फिर अग्नि कुंड से कुछ भभूत (राख) या भस्म पेपर में रख कर हमे घर के लिए दी और उसका उपयोग समझाया ।
भगवान के दर्शन कर अब हम खुद को धन्य महसूस कर रहे थे ।अब समय था कुछ यादगार इकट्ठे करने अर्थात फोटो निकालने का तो वो निकाले और पेट पूजा की और तीनों युगों को चलाने वाले भगवान त्रियुगी नारायण जी से विदा ले ली।
नोट- आरती का समय शाम-7 बजे का है दिन में केवल एक बार शाम को ही होती है सुबह के समय केवल भोग लगता है
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यही है वो पौधा , क्या नाम है नही पता, पर तना कोबरा के जैसा है |
वापसी मे पीतम जी ने बोर्ड के साथ सेल्फी ली जो उलटा लिखा नजर आ रहा है,,,पर पीतम जी की खुशी साफ झलक रही है |
त्रियुगी नारायण जी मंदिर |
ब्रहम कुंड |
विष्णु कुंड |
रूद्र कुंड |
ब्रहम सिला पर आशीर्वाद लेते मै और जयकुमार जी |
अग्नि कुंड |
भगवान के दर्शन कर अब हम खुद को धन्य महसूस कर रहे थे ।अब समय था कुछ यादगार इकट्ठे करने अर्थात फोटो निकालने का तो वो निकाले और पेट पूजा की और तीनों युगों को चलाने वाले भगवान त्रियुगी नारायण जी से विदा ले ली।
प्रसन्नता में पीतम जी |
मंदिर के बारे में जानकारी देता बोर्ड |
चारों की एक सेल्फी हो जाय |
विदा |
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Great uncle aap bohat acha likhte hai kabhi publish karwaiye me jarur lunga apki kitab
जवाब देंहटाएंशुक्रिया और आभार पर अभी किताब नही छप रही है अभी आप ब्लाग पर ही पढिए और दोस्तों को भी शेयर करिये ताकि वो इस सुन्दर दुनिया को देख और घूम सके,,,,,,,पसंद करने के लिए एक बार फिर से आभार 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत भाषा शैली .. ।।
जवाब देंहटाएंजी बहुत- बहुत धन्यवाद
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