अल्मोड़ा उत्तराखंड की यात्रा

आज हर इंसान भटक रहा है कोई जानबूझ कर तो कोई अनजाने में, ये यात्रा एक ऐसे भटकते इंसान  की है जो हमें भारत के एक राज्य उत्तराखंड के अलमोड़ा शहर , के पास जंगल में भटकता हुआ मिला था और जो कि एक अंग्रेज था और घूमने  भारत आया हुआ था
                       घूमने और घुमक्कड़ी का शौक तो मुझे भी बचपन से  ही है ये मेरी उत्तराखंड की दूसरी यात्रा थी हमने जल्दी से अपने बैग पैक किये और दिल्ली के नजदीक गाजियाबाद से काठगोदाम के लिए ट्रेन पकड़ ली और सुबह जब हमारी आखें खुली तो भोर की हल्की सी रोशनी हो चुकी थी और ट्रेन हल्द्वानी रेलवे स्टेशन पर खडी थी व चारों और से चाय ,गरम चाय की मधुर आवाजें आ रही थी हमने भी तीन चाय का आडॅर दिया और अभी चाय खत्म ही हुई थी कि ट्रेन लगभग रेंगते हुए अपने अंतिम स्टेशन काठगोदाम पर आ खडी हुई
             दिल अचानक एक अनजान सी खुशी से भर उठा और ये खुशी थी अपने प्यारे पर्वतों को इक बार फिर से नजदीक से देखने की । हम अभी डिब्बे की खिड़की पर ही थे कि अचानक किसी ने हमारे बैग पकडते हुए पूछा कहा जाएंगे साहब जी---नेनीताल , रानीखेत, अलमोड़ा। स्टेशन से बाहर निकलते ही हमारे जेहन में आमिर खान की हिन्दी फिल्म "राजा हिन्दूसतानी " का सीन तैरने लगा । खैर हमने एक जीप ली जिसमें और भी सवारी थी और हमारी पहाडियों की यात्रा काठगोदाम से अलमोड़ा के लिए शुरू हो गयी।
                    मुझे पहाडों को देखकर कुछ ऐसी खुशी मिलतीं है जैसे किसी प्यासे को पानी मिल जाय या किसी मरते हुऐ इंसान को जिन्दगी  ।हम तीनों दोस्त अत्यंत रोमांचित थे कि ड्राइवर ने दूर से हमें भीमताल झील के दर्शन कराके और रोमांच से भर दिया। पहाडों की टेढ़ी-मेढी बल खाती सड़कों पर हमारी जीप धीरे-धीरे आगे बढ़ रहीं थी और हम सर्प सी बल खाती सड़कों,ऊंची-ऊंची पहाडियों हरे भरे जंगलों को देखकर रोमांचित हो रहे थे। सुबह का समय था चीड़ की भीनी भीनी खुशबू ठण्डी हवाओं में फैली थी जिसे हम बार बार दोनो हाँथ गाड़ी से बाहर फैला कर सारी ऑक्सीजन अपने अन्दर खींच  लेने का भरसक प्रयास कर रहे थे भुवाली जो एक छोटा सा शहर है जिससे एक रास्ता नेनीताल को जाता है और दूसरा सीधा अलमोड़ा और रानीखेत को । भवाली के बाद हमारा अगला पड़ाव था खेरना जिसे गरम पानी भी बोलते हैं और यही से नदी पुल पार कर के एक रास्ता रानीखेत को भी जाता है यही पर ढाबे पर हमने दही व आचार के साथ एक एक परांठा लेकर सुबह का नाश्ता किया और मदर नेचर (प्रकृती माॅ --जिसको मैं  अपनी जीवनदायनी भी मानता हूं ) को धन्यवाद किया । ड्राइवर अभी नाश्ते में मशगूल था तो मै भी मोका देख जल्दी से दोस्त के साथ खेरना पुल पर  आ खड़ा हुआ जहाँ तेज ठण्डी हवा पहाडियों के बीच से साँय साँय कर बह रही थी बस कुछ ही देर में हमारे दाँत ठण्ड की वज़ह से किटकिटाने लगे हमने माथे व कानों पर रूमाल बाँध कर उन्हें रोकने का भरसक प्रयास किया पर हम असफल रहे और वापिस आ कर जीप में बैठ गए खेरना यानी गरम पानी नाम के विपरीत निकला तब तक ड्राइवर भी आ गया और आगे अलमोड़ा की यात्रा शुरू हो गयी
                                   
                                  मैं आप को अवगत करा दू की हमारा ये अलमोड़ा घूमने का प्रोग्राम हमारे एक दोस्त की वजह से हुआ क्योकि उसकी ससुराल अलमोड़ा के पास बलटा गांव में है जोकि हमारा अन्तिम पड़ाव भी था । सारे रास्ते हम हर-पल नये नये  प्राकृतिक नजारों से मोहित से हो गये थकान भी हम पर कुछ हावी हो गयी अब हमारा मन कर रहा था कि हम गाडी को छोड़कर पैदल ही अलमोड़ा शहर तक जाय पर रास्ता अभी लम्बा था तो हम तीनों ने  एकमत हो निर्णय लिया कि हम शहर से तीन-चार किलोमीटर पहले ही गाड़ी छोड देगे और फिर अल्मोड़ा तक पैदल ही जाये। हमारे इस निर्णय को सुन ड्राइवर ने हमारी तरफ कुछ अज़ीब सी नज़रों से देखा जैसे कहना चाहता हो कि चटके हुए हो क्या शायद उसके मन में कही ये शंका थी कि हम कुछ किराया  कम करना चाहते हैं हमने तुरंत उसकी शंका का दूर करते हुए कहा कि हम आपको आपका पूरा किराया देंगे तो उसके चेहरे के भाव पलट गये और एक हल्की सी मुस्कान चेहरे पर तैर गयी । अब वो पूरी तरह से आश्वस्त नजर आ रहा था हमारे बीच अब बातें भी पहले से ज्यादा हो रही थी खैर हम बातो बातो में अलमोड़ा,उत्तराखंड के काफी पास आ गए और उसने फिर इस उम्मीद के साथ हमसे पूछा कि शायद अब हमारा पैदल चलने  का निर्णय बदल गया हो पर हमको अपने निर्णय पर अटल देख उसने हमे अल्मोड़ा से तीन किलोमीटर पहले उतार दिया। हमने उतर कर कुछ देर प्रकृति को करीब से  देखते हुए अपने हजारों पिकसल कैमरों में कैद किया मतलब आंखो मे। और फिर धीरे-धीरे अलमोड़ा की तरफ कदम बढा दिये।
                           लगभग  12 बजे के आसपास हम अल्मोड़ा  आ गये हिमालय की बफ॓ से ढकी चोटियों को छूने को मन कर रहा था पर हमको मालूम था कि वो वहां से काफी दूर हैं हमने पेट पूजा की और थोड़ी बाल मिठाई व शिंगुडी मिठाई खाई जो अल्मोड़ा की फेमस मिठाईया है खायी व कुछ साथ भी ले ली ।सच बताऊँ तो शिंगुडी मिठाई मुझे अत्यंत पसंद आयी ।जो कुछ कुछ चॉकलेटी फ्लेवर में थी अलमोड़ा की खूबसूरती में हमारी सारी थकान छू मंतर हो चुकी थी हम धीरे-धीरे पपरसली की तरफ बढ़ चले। ओह क्या विंहगम नजारा दिखता है  वहां से चोटी पर कसार दैवी टेम्पल है पास ही डोलमा रैस्टोरेंट है जिसके संचालक कुछ विदेशीयो के साथ फर्राटेदार अंग्रेजी में बात कर रहे थे हम उन्हे आशच॔य से देख रहे थे उनकी दाढी बढी हुई थी और प्रथम द्रष्टि हमे वो हाईली एजुकेटेड लगे नही थे पर उन्हें ब्रिटिश लहजे में अंग्रेजो से बात करते देख हमे आशच॔य हो रहा था हमे अपनी टूटी फूटी अंग्रेजी में केवल यही समझ में  आया कि वो लोग शायद नेपाल के रास्ते बनबसा बाडर से उत्तराखंड, भारत आये हैं और अल्मोड़ा और उसके आसपास की जानकारी ले रहे है हम कुछ देर वहाँ रुके और फिर सडक से थोड़ी सी चढाई कर नीचे ढलान पर उतरने लगे
                                         दोपहर के लगभग दो बजे होंगे  जब हमने बलटा गांव के लिए उतरना शुरु किया होगा घने चीड़ के पेड़ों के बीच से टेढी मेढी पगडंडियाँ थी हवाओं में शीतलता और चीड की खुशबू हमे मदहोश सा किये जा रही थी पूरी घाटी में एक अज़ीब सी शान्ति थी जिसको कुछ पहाडी कोवाओ की आवाज़ चीर रही थी जब भी वौ अपनी कर्कश आवाज में बोलते तो आवाज सारी घाटी में गूंजती हुई एक मधुर ध्वनि में परिवर्तित हो जाती वैसे आवाजें तो कुछ और पछीयौ की भी आ रही थी पर कोवे की आवाज़ यहाँ सब पर भारी पड़ रही थी जब भी वो काॅव बोलता -उसकी आवाज घाटी में दूर-दूर तक गूंजती हुई जाती तो ऐसा प्रतीत होता कि हमारे आगमन कि सूचना बलटा गांव तक पहुंचा रहा हो ।हम एक अलग सी दुनिया में विचरण कर रहे थे हमने अपने साथ पानी,कोल्ड ड्रिंक ,और चिप्स लिए हुए थे जिसको खाने का आनन्द यहाँ कई गुना बढ़ गया था। हम तीनों बात चीत मे मशगूल थे ओर धीरे-धीरे नीचे उतर रहे थे कि मेरे दोस्त मनवीर सिंह ने बाघ का जिक्र शुरु कर दिया और हमारे अन्दर ही अन्दर एक डर की हल्की सी लहर दौड़ गयी हम अपने डर पर काबू पाने के लिए जोर जोर से चिल्लाने लगते थे ओर बाघ आ जाय तो उस से कैसे निपटना है मजाक-मजाक मे उसकी रणनीति बनाने लगते नये नये फनी आईडिया देकर। हमे डर तो अवश्य ही लगता पर एक अच्छी बात ये थी कि यहाँ पर चीड़ के पेड़ों के बीच झाड़ियां नहीं थी केवल हरी मखमली छोटी घास थी क्यारियाँ या छोटे छोटे खेत जिन्हे वहां पर नाली कहते हैं एक के बाद दूसरे के नीचे होते जाने की वजह से दूर तक साफ साफ दिख रहा था इस लिए हम कभी कभी बाघ से बेफिक्र होकर गाना गाने लगते थे हम प्रकृती का भरपूर आनंद ले रहे थे और उसको धन्यवाद भी कर रहे थे थोड़ी थकान हो गयी थी तो हम एक जगह बैठ गए और कोल्ड ड्रिंक के एक एक पैग बनाने के बाद चिप्स खाकर खुद को तरोताजा करने लगे ।कुछ देर तरोताजा होकर हम फिर से  चल दिए कुछ दूर चलने पर हमे महसूस हुआ कि हम शायद रास्ता भटक गए हैं वहां हमें रास्ता बताने वाला क़ोई नही था तो हमने आईडिया से अपने बांयी ओर थोड़ा ऊपर चढ़ना शुरू किया जहां से हल्का सा धुआं जंगल में ऊपर उठ रहा था। कुछ देर में ही परिणाम हमारे सामने था चार पांच पहाडी औरतो का एक झुंड जो बहुत ही प्यारी आवाज़ में शायद वहां का कोई फोक गीत गाते हुए धान की रोपाई कर रही थी हमारे सामने थी हमे थोड़ी राहत मिली हमने उनसे बलटा गांव का रास्ता जानना चाहा पर भाषा की अडचन सामने थी कुछ प्रयास के बाद हम उन्हे बलटा गांव ही समझा पायें तो वो ये समझ पायें कि हम बाहर के रहने वाले हैं और बलटा गांव जाना चाहते हैं तो उनहोंने हमे हाथों के इशारों से बलटा गांव का रास्ता बता दिया और हम आगे बढ़ गए कुछ देर चलने के बाद हमें हमारी मंजिल दिख गयी। ये एक छोटा सा गांव था जो एक ढलान वाली पहाडी पर बसा था शाम के लगभग चार बजे थे थकान हम पर हावी थी आदर सत्कार और चाय पानी के बाद जब हम को आराम करने को बोला गया हम तुरंत ही गहरी नींद के आगोश में थे।
                    अगली सुबह जब हम सो कर उठे तो सूर्य देव पहाडी के पीछे से हल्के हल्के झाँक रहे थे हमने भी चारों तरफ़ के मनोहारी दृश्य को अपने हजारों मेगा पिक्सल के पृकृतिक कैमरे में हमेशा के लिए कैद कर लिया और मुँह हाथ धोकर चाय के साथ चर्चा पर घर के सामने खुले में कुरसी डाल कर बैठ गए ओर चर्चा शुरु हो गयी। गांव के लोग आते जाते घर वालों से हमारे बारे मे अपनी पहाडी भाषा में पूछते
और चले जाते। अब हमने घर वालों से आस पास के सुन्दर स्थानो के बारे जानकारी ली तो पता चला की गांव के पीछे की तरफ एक पहाडी नदी है ओर उस पर एक पनचककी (पानी से चलने वाली मशीन जिस से आटा पीसता है ) लगी हैं बस फिर क्या था मेरा घुमक्कड़ मन शीघ्र वहां जाने को व्याकुल हो उठा । हमने शीघ्र ही अपने जरूरी कपड़े और एक स्थानीय लडके हरीश को  साथ लिया और नदी पर पहुंच गए ये एक पथरीली नदी थी जिसमे मुश्किल से घुटनों तक़ पानी था और पानी एकदम बफ॓ की तरह ठंडा था हम ठहरे मुडकी लगाकर नहाने वाले लोग जो वहाँ सम्भव नहीं थी तो हम हरीश की मदद ले एक ऐसे स्थान पर पहुंचे जहाँ पर नदी का पानी कुछ ऊचाई से गिरने के कारण नीचे एक छोटी गहरी झील सी बन गई थी ओर हम वहां ऊपर से छलांग लगाकर नहा सकते थे पहली बार हल्का सा डर लगा कि कहीं छलांग लगाने पर नीचे पत्थर ना लग जाए पर एक दो बार छलांग लगाते ही सारा डर दूर हो गया। अब सूर्य देव भी थोड़ा गरम होने लगे थे हम पानी में छलांग लगाते और बाहर आकर धूप में पत्थरों पर लेट जाते और मस्ती में घडियालो से पड़े रहते और कुछ देर बाद फिर छलांग लगा देते। हालांकि हम साबुन घर से साथ लेकर गए थे परन्तु हमने उसका प्रयोग नहीं करना ही उचित समझा क्योकि इस से नदी की जैव विविधता को खतरा उत्पन्न होता। हमे अब भूख लगने लगी थी और घर से भी दो बार बुलावा आ चुका था हमने एक बार पनचककी जिस पर सारे गांव का आटा पिसता था को देखकर घर की तरफ कदम बढ़ा दिए हालाँकि यहाँ लोग चावल का ही अधिक प्रयोग करते हैं और गेहूं बहुत ही कम स्तेमाल होता है।
                                    घर पर हमारा बेसब्री से इंतज़ार हो रहा था आते ही गरमा गरम ख़ाना तैयार था दाल चावल के साथ हमारे लिए विशेष रूप से रोटी सब्जी का भी इंतजाम था साथ ही सलाद में मूली खीरा हरी मिर्च ओर नींबू था ।क्युकि सबकुछ घर का और बिना दवाओं के उगाया गया था तो खाने मे एक अलग ही टेस्ट था जो कि भर पेट खाने के बाद भी तुरन्त ही पच भी जाता है और दो घंटे बाद ही फिर से भूख लगने लगती हैं पेट पूजा के बाद हम आराम के मोड मे आ गए ओर दो घंटे की जबरदस्त नींद खीच दी ।जब आखें खुली तो चाय इंतजार कर रही थी ओर  सूर्य देव धीरे-धीरे पहाडियों के पीछे छुपने की ओर बढ रहे थे हवाओं में कुछ ठण्डी बढ गई थी सूर्य देव भी यहां घर जाने की जल्दी में रहते हैं और पाँच बजे ही धुंधलका छाने लगता है चाय पे चर्चाऔ का एक और दौर चला , अगले दिन सुबह जल्दी उठकर पहाडी नदी पार कर आगे की पहाडी से उगते सूर्य को बफ॓ से ढकी चोटियों से उगते हुए मनोहारी दृश्य को देखने का और अल्मोड़ा घूमने का प्रोग्राम तय हुआ , कुछ बाघ के किस्से हुए ओर फिर सूर्य देव धीरे-धीरे पहाडी के पीछे चले गए। हम कल के कार्यक्रम और आज की मीठी यादों के साथ में खा पीकर बिस्तर में समा गए

      हम जल्दी से सो गए तों सुबह आखें भी जल्दी ही खुल गई जल्दी से नित्य कार्यो से निपट कर हम उगते सूर्य देव के दर्शन के लिए नदी पार कर एक ऊंची पहाड़ी पर पहुंच गए पर जल्दबाजी में मेरा हाथ एक बिच्छू घास के पेड़ जा टकराया जिस पर सुबह की ओस भी थी अचानक ऐसा लगा जैसे किसी बिच्छु ने डसा हो और मेरे हाथ की ऊँगली में वहाँ एक असहनीय दर्द होने लगा वहाँ पर हल्की खुजली भी होने लगी मैने वहां से ऊँगली को मुँह में रखकर दाँतो में दबा लिया और उसे चूसकर बाहर फेकने लगा और कुछ ही देर में सूर्य देव ने जब दर्शन दिया तो मै अपना सारा दर्द भुल गया शायद वो पचाचूली ग्लेशियर की बफ॓ से ढकी चोटिया थी जोकि सूर्य की किरणों के पडने से बार-बार रगं बदलती सी प्रतीत हो रही थी हम भाव विभोर होकर देर तक इस दृश्य को देखते रहे ओर फिर वापसी घर की तरफ लौट चलें । फिर से  कल की तरहां नदी में स्नान किया और घर पर आ गये जहाँ सब हमारा नाश्ते पर इंतजार कर रहे थे हमने जल्दी से नाशता समाप्त किया और अल्मोड़ा की और चल दिए।
                       जो रास्ता हमे अल्मोड़ा से बलटा आते वक्त आसान लगा था अब वापस चढने पर अत्यंत कठिन लग रहा था कुछ ही दूरी चलने पर हमारी साँस फूलने लगती थी और हमें विश्राम के लिए रूकना पडता था तभी हमने देखा कि ऊपर वाली पगडंडी पर एक विदेशी बाला सिर पर एक धुप की कैप ( टोपी ) लगाये धीरे-धीरे गांव व नदी की तरफ बढ़ रही है हम भी उसकी तरफ बढ़ चले की पूछते हैं वो कहा जा  रही है या रास्ता भटक गई है पर पास जाते ही हमारे सारे भ्रम दूर हो गये ये तो एक अंग्रेज लडका था जिसने लम्बे लम्बे बाल रखाये हुए थे और धूप की कैप पहनी हुई थी ओर बड़े ही निश्चित भाव से केला खाता हुआ मस्त चला आ राहा था हमारे पास भी आज अच्छा मौका था भीड से दूर अपनी टूटी फूटी अंग्रेजी में बात करने का। क्युकि भीड में हम शर्म के मारे बात नही कर पाते थे जैसे ही वो हमारे पास आया उसने आदर से हाथ जोड़कर कहा-----नामस्ते
हमने भी आदर से हाथ जोड़कर कहा--नमस्ते
अब हम ने भी अपनी टूटी फूटी अंग्रेजी में कहा------where r you going?
उसने कहा कि वो गांव ओर नदी देखने जा राहा है तब हमे पता चला की ये लोग घूमने के कितने शौक़ीन हैं और कहाँ से आकर जंगलों में अकेले घूम लेते है ओर हम यहाँ के होकर भी नही घूम पाते।
और अब अगला सवाल उसका था-----what is this ?
मैंने रिप्लाइ दिया----merrigold      मेंरे हाथ में एक बडा सा गेंदा का फूल था जो में बार-बार हाथ पर उछाल रहा था व उसका बड़ा साईज देखकर मैने उसे चलते-चलते गांव के एक घर से तोड लिया था इसी को देखकर उसने मुझसे ये सवाल किया था
उसने फिर मुझसे उसके इस्तेमाल के बारे में पूछा तो मै बता दिया कि ये यहाँ दवाओं , इत्र व अन्य कई चीजों में इस्तेमाल होता है उसने भी सहमती में सिर हिलाया

फिर अगला सवाल मेरे दोस्त का था-----you hv any girlfriend or wife
जबाब सुनकर हम कुछ देर को आशच॔य चकित रह गए  पहले तो हमे समझ नही आया उसने क्या कहा जहाँ सारी वार्तालाप टूटी फूटी अंग्रेजी में हो रही थी ओर उसने कहा था----------आई एम कुँवारा  , जो हमारे sorry कहने के बाद उसने रीपीट कर बोलने पर हमे समझ में आया 
हमने अब उससे पूछा----do you know hindi
उसने कहा---------something something
हमने पूछा------your country?
उसने बताया-----England  उसने हमे बताया कि वो नेपाल घूमने के बाद बनबसा बाडॅर होकर अल्मोड़ा आया है
हमने उससे पूछा----'where do u live now ?
उसने कहा----khims house    जो कि वही एक लाॅज थी जहाँ वो पिछले तीन महीनों से वह रह रहा था और इसी वजह से कुछ हिन्दी भी सीख गया था हमने कुछ और बातें कर उसे जंगली जानवरों से सावधान रहने की सलाह दे कर विदा ले ली
पर अब हम उससे कुछ जुड़ाव सा महसूस कर रहे थे क्युकि भाई भी पक्का घुमक्कड़ था
                                           जब हम अल्मोड़ा आ गये तो हमे उसके आइ एम कुँवारा कहने का मतलब भी समझ में  आ गया था कयूकि अल्मोड़ा शहर में उस वक़्त गोविंदा की फिल्म  कुँवारा चल रही थी और भाई ने शायद वो देख ली थी
पूरे दिन अल्मोड़ा ओर कसार देवी मंदिर देखने के बाद हम ख़ुशी में ये भूल गये कि हमे वापिस लौट के बलटा भी जाना है जब तक होश आया दिन छिप चुका था और अब छोटी-छोटी पगडंडियो से अंधेरे में कैसे वापस कैसे जाया जाएगा और रात में जंगली जानवरों का खतरा भी बढ जाता है हम एक दूसरे को बाघ से डराते हुए आगे बढ़े ही थे कि हमारी स्थिति को पहले से समझ कर टार्च के साथ एक आदमी को हमे लेने भेज दिया जोकि हमे पगडंडी के शुरूआत में ही खड़ा मिला और हम उसके साथ तेजी से चलते हुए गांव वापिस आ गये जहाँ सभी बैचैनी से हमारी राह देख रहे थे हमे अपने बीच देख सबने राहत की सांस ली। हम जाते ही खाना खाकर सो गये ओर सुबह उठकर दिल्ली की वोलवो पकड ली।।।।।
         दोस्तो ये मेंरा पहला ब्लाग है और लिखने का कोई अनुभव नहीं है तो लिखने में हुई ग़लतियों के लिए माफ़ी चाहूँगा आप तक ये ब्लाग पहुंचे तो अपने विचारों से अवश्य अवगत कराएं कि यह आपको ये कैसा लगा ।इनही शब्दों के साथ विदा ।       
                   B singh

1. हरिद्वार मसूरी यात्रा के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें                                             
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2.गंगोत्री गोमुख यात्रा
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