Gangotri गंगोत्री
गंगोत्री यात्रा
Suraj with me In Gangotri |
जिसको को भी ये घुमने का वायरस लग गया ना फिर उसको ना गाड़ी चाहिए ना बंगला ना धन और दौलत वो तो फकीर हो जाता है जैसे फकीर को एक ही प्यास होती है वैसे ही घुमक्कड़ो की भी एक ही प्यास होती है एक नयी जगह या नया नजारा जो कि पहले देखे हुए नजारे से भी ज्यादा सुन्दर और अदभुत हो बस यही चीज़ें उसे कस्तूरी मृग बना देती है जो उसे एक जगह टिकने नहीं देती ।बस हमारा हाल भी कुछ ऐसा ही है जब से मसूरी यात्रा से आते वक़्त ऋषिकेश बस अडडे पर मिले दिल्ली के कुछ लड़को से उत्तराखंड के चार धामों के बारे में सुना है तब से बस दिमाग की दही ये सोच-सोच कर हो गई कि इनमें सबसे सुन्दर जगह कौन सी होगी (मेरी हरिद्वार मसूरी यात्रा को पढने के लिए ब्लाग के अंत में दिए गए लिंक पर क्लिक करें )
जब इस बार हम दो लोगों की संसद में पहले किस जगह घूमा जाए का प्रस्ताव पहले की तरह 2-0 के पूर्ण बहुमत से पास नहीं हो सका तो निर्णय लिया गया कि हरिद्वार ऋषिकेश जाकर पहले पता करेगें कि कौन सी जगह ज्यादा सुंदर है फिर आगे का प्रोग्राम सेट किया जाएगा क्युकि उस समय आज की तरह इंटरनेट और गूगल नहीं था हाँ कोडेक का KB 10 कैमरा हमने अवश्य ले लिया था और अपने अपने बैग पैक कर हम एक अनजान जगह को घुमने के लिये निकल पडे थे दिल्ली से बस पकड़ कर सीधे हरिद्वार पहुचें जो कि दिल्ली से लगभग 200 किलोमीटर की दूरी पर है मजाल है जो जरा सी थकान महसूस की हो । जेहन में बस एक ही सवाल कौन सी जगह ज्यादा सुंदर होगी और वहाँ का नजारा कैसा होगा, रात को हरिद्वार में रूके तो चाहे होटल वाला हो या टूर एंड ट्रैवल वाला सबसे एक ही सवाल कि चारों धामों में सबसे सुन्दर जगह कौन सी है और सबसे एक ही उत्तर आया कि बताना मुश्किल है चारों ही सुंदर है, लेकिन एक बात पता चली कि गंगोत्री अधिक ठंडा है और गंगा मैया का उदगम स्थल गोमुख को देखने की इच्छा की वजह से विदेशी व भारतीय टूरिस्ट भी अधिक संख्या में जाते है तो निर्णय हो गया कि सबसे पहले गंगोत्री की यात्रा ही की जाय और गोमुख के दर्शन भी किये जाये जो कि गंगा मैया का उदगम स्थल भी है बस ऋषिकेश से सुबह 5 बजे थी जो शाम को लगभग 6-7 बजे गंगोत्री पहुंचा देती थी सुबह 5 बजे ऋषिकेश से बस पकड़ ली और ॠषिकेश से गंगोत्री 270 किलोमीटर दूर है का एक अनदेखा अनजान और अदभुत सफर शुरू हो गया । दिल्ली से गंगोत्री 500 किलोमीटर दूर है
गंगोत्री की यात्रा ( gangotri )
ये एक बड़ी बस ना होकर मिनी (छोटी) बस थी क्यूॅकि रास्ते इतने छोटे टेडे-मेडे और घुमावदार है कि उन पर बड़ी बस को मोड़ना कठिन काम है इस लिए ज्यादातर छोटी बसें ही थी ड्राईवर साहब ने गंगा मैया के जयकारे लगवा कर यात्रा को जोश और उत्साह से भर दिया और सुबह की भजन कीर्तन और आरती वाला टेप चला कर सब को दिन निकलने तक भक्ति में सराबोर रखा बाहर ठंडी हवा तेजी से बह रही थी इसलिए बस के सभी शीशे बंद कर दिये थे जैसे ही हलका सा दिखाई देना लगा तो हमने बाहर का नजारा लेना शुरू किया तो नज़र सीधा सड़क के किनारे लगे हुए एक बोर्ड पर पड़ी जिस पर लिखा था " मै पहाड़ी नागिन हूँ तेज चलाओगे तो डस लुंगी " बस पढते ही डर की एक मीठी सी सिरहन अंदर तक दौड़ गयी बस धीरे-धीरे लगभग रेंगती हुई से नरेन्द्र नगर को पार कर चम्बा टिहरी की तरफ बढ रही थी बस में हम दो युवकों को छोड़ कर लगभग सभी उम्र दराज लोग थे जो जिंदगी के सारे बसंत देख चुके थे और अब जिंदगी खोने का उन्हें कोई डर नहीं था फिर भी कोई खतरनाक जगह होती तो सब को भगवान याद आने लगता ।अब बीच बीच में बस कहीं रुकती तो कुछ स्टूडेंट और लोकल सवारीयाॅ चढने लगी जो चम्बा व टिहरी जा रहे थे चम्बा जो टिहरी के पास एक छोटा कस्बा हैऔर ऋषिकेश से लगभग 65 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है यहाँ से एक रास्ता धनोलटी होते हुए मसूरी को जाता है और दूसरा टिहरी को जो यहाँ से बस 10 किलोमीटर की दूरी पर है अब तो टिहरी को स्थानांतरित कर पहाड़ी के ऊपर बसा दिया गया है परन्तु उस समय पुराना टिहरी शहर टिहरी बांध के अंदर समाने को तैयार था और भागीरथी (गंगा) के प्रवाह को टिहरी डैम बनाकर रोका जा रहा था टिहरी का अपना एक प्राचीन और सांस्कृतिक इतिहास है टिहरी एक प्राचीन रियासत रहा है और टिहरी राजघराने की मान्यता व मान सम्मान आज तक कायम है बस ने हमें टिहरी बस अडडे पर जाकर ही पेट पूजा का कुछ मौका दिया हमने जल्दी से पेट पूजा कर टिहरी बांध के एक क्षणिक दर्शन किये कि तभी बस वाले ने होर्न दे दिया हमने जल्दी से अपनी सीट पर कब्जा किया और आगे की यात्रा शुरू हो गई अब आगे का रास्ता भागीरथी के साथ-साथ था ड्राईवर ने पहाड़ी गानों को बजाना शुरू कर दिया था जिसका बमुश्किल कोई शब्द हमें समझ आ रहा था पर हम बाहर के अनमोल नजारों का जी भरकर आनन्द ले रहे थे बीच बीच बीच में चढने वाले लोग वहाँ जीप गिरी वहाँ बस गिरी और कितने लोग मरे ये बताते तो हम खाई की तरफ देख कर ये आकलन करने लगते कि बस यहाँ से गिरी तो कहाँ जा कर रुक सकती है पर फिर कोई सुंदर नजारा दिख जाता और हम डर को भूल कर और बातों में मस्त हो जाते थे टिहरी बांध के पानी की एक बहुत ही खूबसूरत झील अब तैयार हो गयी है
चिनयालीसोर मे आकर डर कुछ कम हुआ यहाँ थोडा पलेन सा एरिया था, चिनयालीसोर को पार कर हम धरासू बैंड (बैंड मतलब मोड) पहुंचें जो ॠषिकेश से 145 किलोमीटर की दूरी पर है तो यमुनोत्री की सवारी यहाँ ऊतर गयी पर यमुनोत्री से उत्तरकाशी और गंगोत्री जाने वाली सवारी चढ़ गयी बस में फिर से भीड हो गई । वैसे तो चिनयाली सौंड मे अब हमारे एक बडकोट के परम मित्र मुककी की ससुराल भी है जो बडकोट के पास ही चकर गाँव का निवासी हैं उनसे मुलाकात की भी एक रोचक दासताँ है जिसका वर्णन यमुनोत्री यात्रा मे होगा । धरासू बैंड से जो रास्ता कटता है वो बडकोट हो कर यमुनोत्री पहुंचाता है और बडकोट से एक रास्ता नौगांव, नैनबाग,और डामटा होकर कैम्पटी फाल वाले रास्ते से हो कर मसूरी मिल जाता है जिसे देहरादून और मसूरी से सीधे यमुनोत्री आने वाले लोग इस्तेमाल करते है और यमुनोत्री से धरासू बैंड होकर gangotri जाते है इह तरह धरासू बैंड एक जंक्शन की तरह काम करता है धरासू से उत्तरकाशी के बीच का रास्ता कुछ ज्यादा ही खतरनाक था ऊपर से खतरनाक पहाड़ीयो का भू-स्खलन तो सडक से नीचे बहती भागीरथी की तेज धारा, यहाँ की पहाड़ियाँ पथरीली ना होकर मिटटी और छोटे पत्थरों की है जो जरा सी बारिश में ही नीचे सडक पर आ जाती है यहाँ हल्के डर का अनुभव हुआ की कहीं यहाँ आकर गलती तो नहीं कर ली है अब तो इसको यहाँ पर डबल रोड किया जा चुका है बस अब उत्तरकाशी पहुँच गयी थी जो कि उत्तराखंड का एक प्रमुख जिला है और ऋषिकेश से 170 किलोमीटर दूर है यमुनोत्री व गंगोत्री दोनों धाम इसी जिले के अंतर्गत आते हैं और उत्तराखंड के चारों धाम गढवाल डिवीजन में है । यूँ तो गढवाल सारी दुनिया की सुन्दरता को अपने में समेटे हुए है इसका हर जिला चाहे टिहरी गढ़वाल हो या उत्तरकाशी ,चाहे चमोली हो या रुद्रप्रयाग अपने-अपने बेजोड़ और अप्रतिम सौंदर्य को समेटे हुए है पर ऐसा कह सकते हैं कि चारों धामों ने इसके सौंदर्य में और चार चाँद लगा दिए हैं और यहाँ की सांस्कृतिक विरासत के तो कहने ही क्या । चमोली की मिटटी की खुशबू और यहाँ के फोक की मिठास के पीछे दुनिया की सारी मिठाई फीकी है उत्तरकाशी में बस कुछ देर रूकती है तो पेट पूजा कर ली गई । उत्तरकाशी पहाडों के बीच समतल में बसा एक बड़ी जनसंख्या वाला सुंदर शहर है जो भागीरथी के किनारे बसा हुआ है गंगा को भागीरथी इस लिए बोला जाता है कि गोमुख से निकलने वाली भागीरथी की धारा जब बदरीनाथ धाम से आने वाली अलकनंदा से देवप्रयाग में मिलती है तब पतित पावनी गंगा कहलाती है और एक अन्य प्रमुख नदी मंदाकिनी जो केदारनाथ धाम से आती है रुद्रप्रयाग में आकर पहले ही अलकनंदा में मिल जाती है इस तरह तीन धाम गंगोत्री, बदरीनाथ, और केदारनाथ जी माॅ गंगा और उनकी सहायक नदियों के लगभग उदगम स्थल पर स्थित है और चौथा धाम यमुनोत्री यमुना जी के उदगम स्थल पर ।
गंगोत्री के रास्ते में
मेरे दोस्त मनवीर जी कुछ समय के लिए बस में दो तीन साधुओं से वार्तालाप में मशगूल हो गए जो उनसे गंगोत्री और गोमुख के बारे में जानकारी ले रहे थे तो साधुओं ने तपोवन के बारे में जानकारी दी कि किस तरह दुर्गम परिस्थितियों में और कम ऑक्सीजन में भी कुछ साधु तपोवन में रहते है बातों-बातों में कब 32 किलोमीटर की दूरी पार कर ली पता ही नहीं चला और हम भटवाडी आ गये यही से बस का ड्राईवर बदल गया गाड़ी की सब चीजों को एक फिर से परखा गया क्युकि रास्ता अब और दुर्गम होने वाला था और एक बहुत ही निपुण ड्राईवर की आवश्यकता थी दोनो ओर ऊंची-ऊंची पहाड़िया थी बीच बीच में नीचे भागीरथी एक पतली सी धारा के रूप मे बह रही थी बस एक बार फिर जय गंगा मैया के नारे के साथ गंगोत्री की यात्रा पर चल पड़ी यहाँ से gangotri के लगभग 65-68 किलोमीटर के सफर का शब्दों में वर्णन करना मुश्किल है एक से एक सुन्दर नजारों ने दिल को खुश कर दिया सडक और भागीरथी संकरी होती गयी रास्ते दुर्गम और पहाड़ीया एक के बाद दूसरी ऊंची होकर आसमान को छूने को तत्पर होने लगी कहीं बीच बीच में झरने दिखते तो कहीं पहाडों पर अठखेलियां करते बादल ,हवा भी अब ठडं चढ़ाने लगी थी ऐसा रूमानी मौसम की जल्द ही स्वेटर निकलने को मजबूर होना पड़ा । बीच बीच में रपटा भी आ रहे थे रपटा वहाँ उसे बोलते है जहाँ सडक पर ऊपर से पानी आकर नीचे बह रही नदी में गिरता है तो पानी सडक पर दूर तक ना फैले तो वहाँ पर सडक को कुछ गहरा कर के बनाया जाता है वैसे तो उस पानी की गहराई एक फुट से ज्यादा नहीं होती थी पर बहाव इतना तेज होता था कि कई बार कार जैसे छोटे वाहनों की दिशा बदल देता था या बहा देता था कुल मिलाकर हम एक अदभुत यात्रा का आनन्द ले रहे थे जो अभी जारी थी
भटवाडी के पास गंगोत्री के सफर में
कुछ लोगों ने डर को दूर करने के लिए भजन कीर्तन भी शुरू कर दिये थे और ये डर हरसिल जाकर खत्म हुआ जिसका प्रथम दर्शन आपको सुखी टाप से ही हो जाता है सुखी टाप नाम का ही नहीं सच में सुखी होने का एहसास कराता है यहाँ से हरसिल तक सेब के बहुत सारे बगीचे है और थोड़ी ही दूरी पर गिरता एक सुन्दर झरना इसकी खूबसूरती को और बढ़ा देता है हरसिल आकर भागीरथी का पाट काफी चौड़ा हो जाता है और एक समतल का रूप ले लेता है और साथ ही सडक भी नीचे आकर भागीरथी के साथ-साथ चलने लगती है लोग सड़क से गाड़ी नीचे ले जा कर नहा कर यात्रा की थकान को दूर करते है हालाँकि पानी बफ॔ से भी ठंडा होता है परन्तु कुछ साहसी गाडिय़ों को भी धो लेते हैं
हरसिल समुद्र तल से 2620 मी. की ऊचाई पर बसा हुआ है यहाँ रहने वाले लोग जाड, भोटिया और बौद्ध लोग है गरमी के मौसम में अधिकतम तापमान 22 डिग्री सेल्सियस और न्यूनतम 8 डिग्री सेल्सियस के आस-पास रहता है सेब की एक खुबसूरत प्रजाति विल्सन जो यहाँ पायी जाती है एक विदेशी अँगरेज नागरिक विल्सन के नाम पर ही है जो कि यही की एक पहाड़ी लड़की से शादी करने के बाद हरसिल की खूबसूरती से मोहित हो कर यही बस गये थे चारों ओर चीड़ और देवदार के पेड़ बहुतायात में नजर आते है
हरसिल में पानी की कई धाराएं मिलती है कई सुन्दर झरने है जिनसे दूध सा सफेद पानी गिरता रहता है सेब के बगीचे और चारों ओर चीड़ के इतने विशाल वृक्ष है कि आप प्रकृति की महानता के कायल हो जाओगे और सिर अपने आप हिमालय और प्रकृति के सम्मान में झुक जाएगा भागीरथी की धाराओं के बीच में बसे हरसिल की जनसंख्या तो ज्यादा नहीं है परन्तु इस जगह की खूबसूरती प्रकृति के द्वारा धरा के केनवास पर बनायी गयी एक अनमोल पेंटिंग की तरहा है अलग-अलग धाराओं से चारों ओर आता पानी आप को भगवान शिव की बिखरी हुई लटाओ से गंगा के पृथ्वी पर अवतरण की कहानी को आखों के सामने सिद्ध करता सा प्रतीत होगा और आप का मन अवश्य करेगा कि यहाँ कुछ समय रूक कर गुजार लूँ पर इस बार हम बस में थे तो ये सम्भव ना हो सका बस gangotri 25 से 30 किलोमीटर और था जो हमारी गंगोत्री की यात्रा का अंतिम पड़ाव था
हरसिल को निकलते ही एक बार फिर चढाई शुरू हो गई और मंदाकिनी फाल को पार कर हम धराली जा पहुचें और लंका आते-आते सारी पिक्चर फिर से बदल गई बिलकुल पक्के पहाडों को बीच से काटकर भागीरथी एक बार फिर सैकड़ो फिट नीचे बह रही थी ड्राईवर बार-बार गियर बदल रहा था और बस की ऊपर चढ़ने में हालत खराब हो रही थी भागीरथी के तीव्र वेग ने पत्थरों को बहुत ही सुन्दर तरीके से तराशा हुआ था देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि आप एक छलांग लगा कर भागीरथी को पार कर लोगे पर नीचे देखते ही आप को चक्कर आ जाय इतना परचंड वेग है यहाँ भागीरथी यानि गंगा मैया का । भैरो घाटी का नजारा भी अत्यंत सुन्दर है चीड़ के इतने विशाल वृक्ष है और भैरव बाबा का मंदिर भी यही से एक और धारा (जाड) भागीरथी में आके मिलती है जिसके साथ-साथ एक रास्ता चाईना बाडर की तरफ जाता है और दूसरा 6 किलोमीटर दूर गंगोत्री धाम को । लगभग रात हो चुकी थी जब हम गंगोत्री पहुँच गए । होटल बाय सूरज हमें पूल पार करा के होटल में ले गया जो कि गंगोत्री मंदिर के सामने दूसरी तरफ था चारों ओर से केवल मंदिर के घटों की और भागीरथी के प्रचंड वेग से बहने की आवाजें आ रही थी हवा दोनों तरफ की पहाड़ियों के बीच से कुछ ज्यादा ही तेज वेग से बह रही थी जो कि हमारा ज्यादा देर तक बाहर खड़ा रहना मुश्किल कर रही थी पूरे दिन की बस की यात्रा ने हमारी हालत पतली कर दी थी हमने शीघ्र ही बिस्तर पकड लिया खाने की वयवस्था होटल के भू-तल की छत पर थी जो हमारे
प्रथम माले के रूम के सामने ही थी हमने खाना खाया और गोमुख के बारे में जानकारी ले कर बिस्तर में समा गए फिर नींद ने सुबह तक आखें खोलने का कोई मौका ही नहीं दिया और जब आखें खुली तो दिन निकलने की तैयारी में था
भोर की हल्की सी रोशनी फैली हुई थी हम रजाई ओढ़ कर बेड पर ही खिडकी के पास बैठ गए ओर सूर्य के निकलने की प्रतिकक्षा करने लगे खिडकी से भागीरथी के पार दुध से सफेद रंग से बना गंगा मैया का मंदिर और उसके पीछे सलेटी रंग के ऊँचे-ऊँचे नंगे पहाड थे जिन पर नीचे की तरफ ही कुछ चीड़ या देवदार के पेड़ नजर आ रहे थे और उन ऊंची पहाड़ीयो के पीछे से सूर्य देव दर्शन देने वाले थे हमने होटल वाले से चाय की इच्छा जतायी पर उसने इतनी जल्दी चाय देने में असमर्थता जता दी । बाहर के नजारे पल पल रगों को बदल रहे थे और कुछ ही देर में सूर्य देव ने अपने तेज प्रकाश से ऊंची चोटियों पर अपनी चमक बिखेरनी शुरू की तो एक जादुई माहौल पैदा कर दिया सफेद चाँदी सी चमक चोटियों के ऊपरी हिस्से से शुरू होकर नीचे की तरफ बढ़ने लगी और एक के बाद एक सुन्दर नजारों ने मन को मुग्ध कर दिया चारों ओर से आती घन्टे और घङियालो की आवाजें भागीरथी के तेज प्रवाह से बहने की आवाजो से कदम ताल सी मिलती प्रतीत हो रही थी मन को एक अजीब सी शांति प्राप्त हो रही थी जिसको शब्दों में वर्णन करना मुश्किल है हमारी तरफ की पहाड़ियों पर पेड़ पौधों की संख्या ज्यादा थी हमने होटल वाले से पूछा कि ऊपर पहाड़ीयो पर कोई रहता है क्यूकि ये खड़ी पहाड़ियाँ हैं जो ऊंची है और केदार गंगा भी वही कही ऊपर से आती है और वहाँ पर किसी का होना नामुमकिन सा है तो उसने बताया कि वहाँ पर एक साधु बाबा रहते है नाम कुछ जड़ी वाले बाबा या झंडी वाले बाबा बताया जो जड़ी बूटियों की तलाश में वहाँ जाते है और जड़ी बूटियों को विदेशी लोगों को अच्छे खासे रेट पर बेचते हैं उन्हें जड़ी बूटियों की अच्छी जानकारी है तब तक सूरज वो लडका जो हमें होटल लेकर आया था वो भी आ गया उसने हमारी चाय का इंतजाम भी कर दिया और हमें गोमुख के बारे में अच्छी तरह से जानकारी दे कर समझा भी गया जब हम उसके साथ थोडा पर्सनल हुए तो उसने हमें बताया कि वो भटवाडी के पास एक गाँव का है और हम जैसे टूरिस्टो को होटल लाने पर उसे 50 (पचास) रूपये प्रति रूम बुक कराने पर मिलते है और कई बार एक भी टूरिस्ट नहीं मिलता है और इसी पैसे से उनका घर खच॔ चलता है अब हमने पूछा कि " गंगोत्री तो छः महीने ही खुलता है तो छः महीने घर कैसे चलता है ? तो उसने बताया कि छः महीने थोड़ी बहुत खेती बाड़ी है फसल बेचते हैं और गुजारा हो जाता है इतनी कम उम्र में अपने परिवार को चलाने और सहयोग देने के बारे में सोच कर हमारा मन उसके प्रति श्रद्धा से भर गया पर हम उसकी कुछ भी मदद करने मे असमर्थ थे क्यू कि हम अभी कुछ भी नहीं कमाते थे या कह सकते हैं कि हमको पहली बार ही कमाने का खयाल ही सूरज से मिला था थोड़ी देर और बातें कर नहाने लगे क्युकि हमें गोमुख के लिए निकलना था
विदेशी यात्रियों ने हाथ जोड़कर नमस्ते कहा काली जैकेट मे मै
दोनो ओर की पहाड़ियों पर ऊपर बफ॔ थी जो पिघल कर झरनों के रूप में नीचे आ रही थी और झरने एक पानी की धारा के रूप में हमारी पगडंडी को पार कर भागीरथी में मिल रहे थे दूर से ही गंगोत्री ग्लेशियर बफ॔ से ढका नजर आ रहा था और घाटी में नीचे की तरफ़ जहाँ से हम आये थे गंगोत्री धाम कहीं गुम हो गया था एक तरफ खड़ी पहाड़ी जिसे काटकर पगडंडी बनी थी और नीचे भागीरथी तेज प्रवाह से बह रही थी शायद मौसम की मार से टूट कर भागीरथी में शमा गयी थी और करीब 25-30 फुट के इस रास्ते पर चीड़ के पेड़ों के तने काट कर बिछा दिये थे और रास्ते को जैसे तैसे चालू कर दिया था सभी यात्रियों की हालत देखते ही खराब हो रही थी और सभी अपने पाप और पुण्य का लेखा-जोखा देकर मन ही मन अपनी की गलतीयों की छमा माँग कर अपने पैर आगे बढा रहे थे भय से कभी आखें खुलती कभी-कभी बदं हो जाती कुछ अपना निर्णय बदल कर वापसी की राह पकड लेते खैर हमारी उम्र कम थी तो हमारा पाप पुण्य का गट्ठर भी कुछ हल्का था तो माॅ भागीरथी को मन ही मन याद कर पैर आगे बढा दिये और माँ ने भी हमें निराश नहीं किया बाँधा को पार कर आगे बढ़ गये चीडवासा में पहुँच कर कुछ आराम किया यहाँ चीड के पेड़ बहुतायात में है तो शायद इसी वजह से इसका नाम चीडवासा पड़ा है हवा हालाँकि बहुत ठंडी थी पर अब जैकट कि जरूरत नही थी सूर्य अपनी पूरी तेजी में मस्त था और हम मैगी के साथ पेट पूजा मे , हमने अपना आधा सफर तय कर लिया था । थोड़ी देर आराम के बाद यात्रा फिर से शुरू हो गई और अब की बार मंजिल था भोजवासा जो यहाँ से 5 किलोमीटर की दूरी पर है यहां भी एक और जादूई नजारा हमारा इन्तज़ार कर रहा था हम भागीरथी के साथ-साथ पगडंडी पर पर चल रहे थे जो काफी नीचे हमारे दायीं और बह रही थी और बायीं ओर एक करीब-करीब 500 मीटर लम्बी रेतीली पहाड़ी थी जिसमें बड़े बड़े पत्थर कुछ इस तरह से खड़े थे कि जरा से इशारे पर औरों को साथ लेकर बस कुछ ही सेकंडो में मौत बन कर आ जाय और ये काम यहाँ ऊपर घूमते हिरणो का एक झुंड बखूबी कर सकता था पर यहाँ हमारे आगे पीछे भाग कर अपनी जान बचाने का विकल्प खुला था और हमारा एक और मानना है कि जब मौत आयेगी तो दिल्ली या नोएडा की सडकों पर भी आ सकती है यहाँ भी तो रोज एक्सीडेंट होते ही है हम मन पक्का कर चलते रहे पर नजरें ऊपर रेत में टिके पत्थरों पर ही थी कि कब ये चलें और कब हम दौड लगाये दिल को तसल्ली तब मिली जब इसको पार कर लिया अब हमारा थकान के मारे बुरा हाल था चीड़ धीरे-धीरे खत्म हो गया था और रास्ते मेंं सिफ॔ छोटी-छोटी झाड़ियां ही बची थी और हल्की फुल्की घास थी बडे पेड़ पूण॔तया खत्म हो गये थे और भोजवासा पहुँचते पहुँचते लगभग एक बज गया था भोजवासा में भोजपत्र के कम ही पेड़ बचे है अब तो लाल बाबा का आश्रम भी वहाँ बन गया है परन्तु उस वक़्त वहाँ केवल टेंट और एक दो अस्थायी दुकानें थी आस पास के शानदार नजारे दिल को सुकून देने वाले थे पर पेड़ पौधों की की कमी के कारण ऑक्सीजन की मात्रा कम हो गई थी कुछ देर चलने पर ही सांस फूलने लगती दोनों और नंगी सलेटी पहाड़ियों पर ऊपर सफेद बफ॔ चाँदी के माफिक चमक रही थी और बादल कभी भी इन चोटियों को आखों के सामने से गायब कर देते थे गंगोत्री ग्लेशियर और सामने आकर पव॔तराज हिमालय की विशालता का अकाट्य सबूत दे रहा था हम गंगोत्री से 14 किलोमीटर की दूरी पर भोजवासा आ गये थे और आगे चलने पर अब घास और झाड़ियां भी खत्म हो गई और अब केवल पत्थरों के ऊपर से चलकर जाना था जिनपर एक के ऊपर दो चार पत्थर खड़े कर रास्ता बताया गया था जो कि सूरज ने हमको होटल में ही बता दिया था हम उन को देख-देख कर हम रास्ते पर आगे बढ़ते गये और गोमुख पहुँच गए
घास भी खत्म हो गई गोमुख से पहले पीछे गंगोत्री ग्लेशियर
गोमुख
गो-मतलब cow और मुख-मतलब mouth यानी गाय के मुख के समान
अब हम लगभग समुद्र तल से 4000 मीटर की ऊंचाई पर थे इसलिए आक्सीजन की कमी के कारण हल्का सिरदर्द व चक्कर से महसूस कर रहे थे साथ में बिस्कुट व पानी ही था जो कुछ एनर्जी दे सकता था वो ली और कुछ देर वही बैठ गए हम खुश थे कि शायद हम अपने गाँव से पहले लोग ही जो इस खुबसूरत जगह का आनन्द ले रहे थे गोमुख के पास एक दो लाल रंग के झंडे कुछ दूरी पर लगाये हुए थे और एक दो साधु वहाँ साधना में तल्लीन थे जब हम गोमुख पहुँचे तो लगभग दो बजे थे हमने माॅ गंगा को प्रणाम करके अपने फोटोग्राफ़ी के हुनर को आजमाया कुछ चार पांच और लोग भी वहाँ थे जो धीरे-धीरे वहाँ से निकल गये थे गंगा मैया बफ॔ के एक छोटे से मुख रुपी छिद्र से निकलकर बहुत ही तीव्र वेग से बह रही थी पर गहरायी मुश्किल से एक फिट ही होगी हम लगभग आधा घंटा से वही थे और चारों ओर के सुन्दर नजारों का आनन्द ले रहे थे मै अपने दोस्त मन्नु का फोटो गोमुख के साथ खींच ही रहा था कि ग्लेशियर का एक बड़ा टुकड़ा टूट कर गोमुख के पास गिरा और हम लोग डर गये जैसे माँ गंगा का साफ निर्देश हो कि बस बहुत देर हो गयी है अब निकलो यहाँ से, हम तुरन्त ही वापिस हो लिए रास्ते मे हम बहुत ही तेजी से नीचे उतर आये क्युकि रात हो जाने का डर हम पर हावी था और अंधेरा होने पर हम गंगोत्री से मात्र एक किलोमीटर ही दूर थे जो कि हमने एक घोड़े वाले के साथ चलकर पूरी कर ली जब हम वापिस आये तो होटल वाला लडका सूरज हमारी कुशल छेम लेने के लिए चिंतित था सूरज ने हमसे हमारी यात्रा की कठिनाइयों को सुना और खाने को पूछा हमारी हालत थकान के कारण ऐसी थी कि हम कमरे से निकलकर किचन तक जो कि होटल की छत पर ही था जाने में असमर्थ थे तो सूरज ने कमरे मे ही खाना खिलवा दिया और खाना खाते ही हम चारों खाने चित्त हो गये और सूबह देर से ऊठे सूरज के साथ एक दो फोटो ग्राफ लिए और गंगा जल भरकर गंगा मैया को प्रणाम कर वापसी के लिए जीप पकड ली । मन अब शांत था क्युकि उसे जो चाहिए था मिल गया था और हमने जिन सुन्दर नजारों की कल्पना की थी ये जगह उस से अधिक सुंदर थी ।
नोट-अब गोमुख की यात्रा करने वाले लोग उत्तरकाशी से यात्रा परमिट अवश्य लें ले,,,और सभी से विनम्र अनुरोध है कि साथ ले जाने वाले बिस्कुट, चिप्स, और अन्य सभी पालीथीन इत्यादि वहाँ ना डालें व साथ लाकर वापसी मे डस्टबिन में डालें
इसी के साथ आप सब से विदा आप को ये लेख कैसा लगा कामेंट में अवश्य बतायें
B. SINGH
गोमुख
चिनयालीसोर मे आकर डर कुछ कम हुआ यहाँ थोडा पलेन सा एरिया था, चिनयालीसोर को पार कर हम धरासू बैंड (बैंड मतलब मोड) पहुंचें जो ॠषिकेश से 145 किलोमीटर की दूरी पर है तो यमुनोत्री की सवारी यहाँ ऊतर गयी पर यमुनोत्री से उत्तरकाशी और गंगोत्री जाने वाली सवारी चढ़ गयी बस में फिर से भीड हो गई । वैसे तो चिनयाली सौंड मे अब हमारे एक बडकोट के परम मित्र मुककी की ससुराल भी है जो बडकोट के पास ही चकर गाँव का निवासी हैं उनसे मुलाकात की भी एक रोचक दासताँ है जिसका वर्णन यमुनोत्री यात्रा मे होगा । धरासू बैंड से जो रास्ता कटता है वो बडकोट हो कर यमुनोत्री पहुंचाता है और बडकोट से एक रास्ता नौगांव, नैनबाग,और डामटा होकर कैम्पटी फाल वाले रास्ते से हो कर मसूरी मिल जाता है जिसे देहरादून और मसूरी से सीधे यमुनोत्री आने वाले लोग इस्तेमाल करते है और यमुनोत्री से धरासू बैंड होकर gangotri जाते है इह तरह धरासू बैंड एक जंक्शन की तरह काम करता है धरासू से उत्तरकाशी के बीच का रास्ता कुछ ज्यादा ही खतरनाक था ऊपर से खतरनाक पहाड़ीयो का भू-स्खलन तो सडक से नीचे बहती भागीरथी की तेज धारा, यहाँ की पहाड़ियाँ पथरीली ना होकर मिटटी और छोटे पत्थरों की है जो जरा सी बारिश में ही नीचे सडक पर आ जाती है यहाँ हल्के डर का अनुभव हुआ की कहीं यहाँ आकर गलती तो नहीं कर ली है अब तो इसको यहाँ पर डबल रोड किया जा चुका है बस अब उत्तरकाशी पहुँच गयी थी जो कि उत्तराखंड का एक प्रमुख जिला है और ऋषिकेश से 170 किलोमीटर दूर है यमुनोत्री व गंगोत्री दोनों धाम इसी जिले के अंतर्गत आते हैं और उत्तराखंड के चारों धाम गढवाल डिवीजन में है । यूँ तो गढवाल सारी दुनिया की सुन्दरता को अपने में समेटे हुए है इसका हर जिला चाहे टिहरी गढ़वाल हो या उत्तरकाशी ,चाहे चमोली हो या रुद्रप्रयाग अपने-अपने बेजोड़ और अप्रतिम सौंदर्य को समेटे हुए है पर ऐसा कह सकते हैं कि चारों धामों ने इसके सौंदर्य में और चार चाँद लगा दिए हैं और यहाँ की सांस्कृतिक विरासत के तो कहने ही क्या । चमोली की मिटटी की खुशबू और यहाँ के फोक की मिठास के पीछे दुनिया की सारी मिठाई फीकी है उत्तरकाशी में बस कुछ देर रूकती है तो पेट पूजा कर ली गई । उत्तरकाशी पहाडों के बीच समतल में बसा एक बड़ी जनसंख्या वाला सुंदर शहर है जो भागीरथी के किनारे बसा हुआ है गंगा को भागीरथी इस लिए बोला जाता है कि गोमुख से निकलने वाली भागीरथी की धारा जब बदरीनाथ धाम से आने वाली अलकनंदा से देवप्रयाग में मिलती है तब पतित पावनी गंगा कहलाती है और एक अन्य प्रमुख नदी मंदाकिनी जो केदारनाथ धाम से आती है रुद्रप्रयाग में आकर पहले ही अलकनंदा में मिल जाती है इस तरह तीन धाम गंगोत्री, बदरीनाथ, और केदारनाथ जी माॅ गंगा और उनकी सहायक नदियों के लगभग उदगम स्थल पर स्थित है और चौथा धाम यमुनोत्री यमुना जी के उदगम स्थल पर ।
गंगोत्री के रास्ते में
मेरे दोस्त मनवीर जी कुछ समय के लिए बस में दो तीन साधुओं से वार्तालाप में मशगूल हो गए जो उनसे गंगोत्री और गोमुख के बारे में जानकारी ले रहे थे तो साधुओं ने तपोवन के बारे में जानकारी दी कि किस तरह दुर्गम परिस्थितियों में और कम ऑक्सीजन में भी कुछ साधु तपोवन में रहते है बातों-बातों में कब 32 किलोमीटर की दूरी पार कर ली पता ही नहीं चला और हम भटवाडी आ गये यही से बस का ड्राईवर बदल गया गाड़ी की सब चीजों को एक फिर से परखा गया क्युकि रास्ता अब और दुर्गम होने वाला था और एक बहुत ही निपुण ड्राईवर की आवश्यकता थी दोनो ओर ऊंची-ऊंची पहाड़िया थी बीच बीच में नीचे भागीरथी एक पतली सी धारा के रूप मे बह रही थी बस एक बार फिर जय गंगा मैया के नारे के साथ गंगोत्री की यात्रा पर चल पड़ी यहाँ से gangotri के लगभग 65-68 किलोमीटर के सफर का शब्दों में वर्णन करना मुश्किल है एक से एक सुन्दर नजारों ने दिल को खुश कर दिया सडक और भागीरथी संकरी होती गयी रास्ते दुर्गम और पहाड़ीया एक के बाद दूसरी ऊंची होकर आसमान को छूने को तत्पर होने लगी कहीं बीच बीच में झरने दिखते तो कहीं पहाडों पर अठखेलियां करते बादल ,हवा भी अब ठडं चढ़ाने लगी थी ऐसा रूमानी मौसम की जल्द ही स्वेटर निकलने को मजबूर होना पड़ा । बीच बीच में रपटा भी आ रहे थे रपटा वहाँ उसे बोलते है जहाँ सडक पर ऊपर से पानी आकर नीचे बह रही नदी में गिरता है तो पानी सडक पर दूर तक ना फैले तो वहाँ पर सडक को कुछ गहरा कर के बनाया जाता है वैसे तो उस पानी की गहराई एक फुट से ज्यादा नहीं होती थी पर बहाव इतना तेज होता था कि कई बार कार जैसे छोटे वाहनों की दिशा बदल देता था या बहा देता था कुल मिलाकर हम एक अदभुत यात्रा का आनन्द ले रहे थे जो अभी जारी थी
भटवाडी के पास गंगोत्री के सफर में
कुछ लोगों ने डर को दूर करने के लिए भजन कीर्तन भी शुरू कर दिये थे और ये डर हरसिल जाकर खत्म हुआ जिसका प्रथम दर्शन आपको सुखी टाप से ही हो जाता है सुखी टाप नाम का ही नहीं सच में सुखी होने का एहसास कराता है यहाँ से हरसिल तक सेब के बहुत सारे बगीचे है और थोड़ी ही दूरी पर गिरता एक सुन्दर झरना इसकी खूबसूरती को और बढ़ा देता है हरसिल आकर भागीरथी का पाट काफी चौड़ा हो जाता है और एक समतल का रूप ले लेता है और साथ ही सडक भी नीचे आकर भागीरथी के साथ-साथ चलने लगती है लोग सड़क से गाड़ी नीचे ले जा कर नहा कर यात्रा की थकान को दूर करते है हालाँकि पानी बफ॔ से भी ठंडा होता है परन्तु कुछ साहसी गाडिय़ों को भी धो लेते हैं
हरसिल समुद्र तल से 2620 मी. की ऊचाई पर बसा हुआ है यहाँ रहने वाले लोग जाड, भोटिया और बौद्ध लोग है गरमी के मौसम में अधिकतम तापमान 22 डिग्री सेल्सियस और न्यूनतम 8 डिग्री सेल्सियस के आस-पास रहता है सेब की एक खुबसूरत प्रजाति विल्सन जो यहाँ पायी जाती है एक विदेशी अँगरेज नागरिक विल्सन के नाम पर ही है जो कि यही की एक पहाड़ी लड़की से शादी करने के बाद हरसिल की खूबसूरती से मोहित हो कर यही बस गये थे चारों ओर चीड़ और देवदार के पेड़ बहुतायात में नजर आते है
हरसिल में पानी की कई धाराएं मिलती है कई सुन्दर झरने है जिनसे दूध सा सफेद पानी गिरता रहता है सेब के बगीचे और चारों ओर चीड़ के इतने विशाल वृक्ष है कि आप प्रकृति की महानता के कायल हो जाओगे और सिर अपने आप हिमालय और प्रकृति के सम्मान में झुक जाएगा भागीरथी की धाराओं के बीच में बसे हरसिल की जनसंख्या तो ज्यादा नहीं है परन्तु इस जगह की खूबसूरती प्रकृति के द्वारा धरा के केनवास पर बनायी गयी एक अनमोल पेंटिंग की तरहा है अलग-अलग धाराओं से चारों ओर आता पानी आप को भगवान शिव की बिखरी हुई लटाओ से गंगा के पृथ्वी पर अवतरण की कहानी को आखों के सामने सिद्ध करता सा प्रतीत होगा और आप का मन अवश्य करेगा कि यहाँ कुछ समय रूक कर गुजार लूँ पर इस बार हम बस में थे तो ये सम्भव ना हो सका बस gangotri 25 से 30 किलोमीटर और था जो हमारी गंगोत्री की यात्रा का अंतिम पड़ाव था
हरसिल को निकलते ही एक बार फिर चढाई शुरू हो गई और मंदाकिनी फाल को पार कर हम धराली जा पहुचें और लंका आते-आते सारी पिक्चर फिर से बदल गई बिलकुल पक्के पहाडों को बीच से काटकर भागीरथी एक बार फिर सैकड़ो फिट नीचे बह रही थी ड्राईवर बार-बार गियर बदल रहा था और बस की ऊपर चढ़ने में हालत खराब हो रही थी भागीरथी के तीव्र वेग ने पत्थरों को बहुत ही सुन्दर तरीके से तराशा हुआ था देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि आप एक छलांग लगा कर भागीरथी को पार कर लोगे पर नीचे देखते ही आप को चक्कर आ जाय इतना परचंड वेग है यहाँ भागीरथी यानि गंगा मैया का । भैरो घाटी का नजारा भी अत्यंत सुन्दर है चीड़ के इतने विशाल वृक्ष है और भैरव बाबा का मंदिर भी यही से एक और धारा (जाड) भागीरथी में आके मिलती है जिसके साथ-साथ एक रास्ता चाईना बाडर की तरफ जाता है और दूसरा 6 किलोमीटर दूर गंगोत्री धाम को । लगभग रात हो चुकी थी जब हम गंगोत्री पहुँच गए । होटल बाय सूरज हमें पूल पार करा के होटल में ले गया जो कि गंगोत्री मंदिर के सामने दूसरी तरफ था चारों ओर से केवल मंदिर के घटों की और भागीरथी के प्रचंड वेग से बहने की आवाजें आ रही थी हवा दोनों तरफ की पहाड़ियों के बीच से कुछ ज्यादा ही तेज वेग से बह रही थी जो कि हमारा ज्यादा देर तक बाहर खड़ा रहना मुश्किल कर रही थी पूरे दिन की बस की यात्रा ने हमारी हालत पतली कर दी थी हमने शीघ्र ही बिस्तर पकड लिया खाने की वयवस्था होटल के भू-तल की छत पर थी जो हमारे
प्रथम माले के रूम के सामने ही थी हमने खाना खाया और गोमुख के बारे में जानकारी ले कर बिस्तर में समा गए फिर नींद ने सुबह तक आखें खोलने का कोई मौका ही नहीं दिया और जब आखें खुली तो दिन निकलने की तैयारी में था
भोर की हल्की सी रोशनी फैली हुई थी हम रजाई ओढ़ कर बेड पर ही खिडकी के पास बैठ गए ओर सूर्य के निकलने की प्रतिकक्षा करने लगे खिडकी से भागीरथी के पार दुध से सफेद रंग से बना गंगा मैया का मंदिर और उसके पीछे सलेटी रंग के ऊँचे-ऊँचे नंगे पहाड थे जिन पर नीचे की तरफ ही कुछ चीड़ या देवदार के पेड़ नजर आ रहे थे और उन ऊंची पहाड़ीयो के पीछे से सूर्य देव दर्शन देने वाले थे हमने होटल वाले से चाय की इच्छा जतायी पर उसने इतनी जल्दी चाय देने में असमर्थता जता दी । बाहर के नजारे पल पल रगों को बदल रहे थे और कुछ ही देर में सूर्य देव ने अपने तेज प्रकाश से ऊंची चोटियों पर अपनी चमक बिखेरनी शुरू की तो एक जादुई माहौल पैदा कर दिया सफेद चाँदी सी चमक चोटियों के ऊपरी हिस्से से शुरू होकर नीचे की तरफ बढ़ने लगी और एक के बाद एक सुन्दर नजारों ने मन को मुग्ध कर दिया चारों ओर से आती घन्टे और घङियालो की आवाजें भागीरथी के तेज प्रवाह से बहने की आवाजो से कदम ताल सी मिलती प्रतीत हो रही थी मन को एक अजीब सी शांति प्राप्त हो रही थी जिसको शब्दों में वर्णन करना मुश्किल है हमारी तरफ की पहाड़ियों पर पेड़ पौधों की संख्या ज्यादा थी हमने होटल वाले से पूछा कि ऊपर पहाड़ीयो पर कोई रहता है क्यूकि ये खड़ी पहाड़ियाँ हैं जो ऊंची है और केदार गंगा भी वही कही ऊपर से आती है और वहाँ पर किसी का होना नामुमकिन सा है तो उसने बताया कि वहाँ पर एक साधु बाबा रहते है नाम कुछ जड़ी वाले बाबा या झंडी वाले बाबा बताया जो जड़ी बूटियों की तलाश में वहाँ जाते है और जड़ी बूटियों को विदेशी लोगों को अच्छे खासे रेट पर बेचते हैं उन्हें जड़ी बूटियों की अच्छी जानकारी है तब तक सूरज वो लडका जो हमें होटल लेकर आया था वो भी आ गया उसने हमारी चाय का इंतजाम भी कर दिया और हमें गोमुख के बारे में अच्छी तरह से जानकारी दे कर समझा भी गया जब हम उसके साथ थोडा पर्सनल हुए तो उसने हमें बताया कि वो भटवाडी के पास एक गाँव का है और हम जैसे टूरिस्टो को होटल लाने पर उसे 50 (पचास) रूपये प्रति रूम बुक कराने पर मिलते है और कई बार एक भी टूरिस्ट नहीं मिलता है और इसी पैसे से उनका घर खच॔ चलता है अब हमने पूछा कि " गंगोत्री तो छः महीने ही खुलता है तो छः महीने घर कैसे चलता है ? तो उसने बताया कि छः महीने थोड़ी बहुत खेती बाड़ी है फसल बेचते हैं और गुजारा हो जाता है इतनी कम उम्र में अपने परिवार को चलाने और सहयोग देने के बारे में सोच कर हमारा मन उसके प्रति श्रद्धा से भर गया पर हम उसकी कुछ भी मदद करने मे असमर्थ थे क्यू कि हम अभी कुछ भी नहीं कमाते थे या कह सकते हैं कि हमको पहली बार ही कमाने का खयाल ही सूरज से मिला था थोड़ी देर और बातें कर नहाने लगे क्युकि हमें गोमुख के लिए निकलना था
दोस्त मनवीर के साथ गंगोत्री में , पीछे गंगोत्री मंदिर का सुन्दर नजारा
गंगोत्री समुद्र तल से लगभग 3100 मीटर की ऊंचाई पर है जहाँ गर्मियों में औसत तापमान 8 से 25 डिग्री सेल्सियस के आस-पास रहता है परन्तु सर्दियों में यह माइन्स -10 डिग्री तक गिर जाता है और भारी बर्फबारी होती है इसलिए यह लगभग छह महीने (नवम्बर से अप्रैल लगभग दीपावली से होली तक) बन्द ही रहता है और गंगा मैया की पूजा उनके मायके मुखवा गाँव में ही होती है जो कि हरसिल के पास में है गंगोत्री मंदिर के कपाट बंद होने पर बड़ी धूमधाम और बैड बाजे के साथ उनकी डोली को मुखवा गाँव ले जाया जाता है और फिर से गंगोत्री के कपाट खुलने पर मुखवा से गंगोत्री , परन्तु अब सरकार प्रयासरत है कि इसे अच्छे रास्ते बना कर पूरे वष॔ चालू रखा जाय कयूकि इस से उत्तराखंड राज्य को एक अच्छी खासी आय प्राप्त होती है । गंगोत्री मंदिर जिसका निर्माण अमर सिंह थापा जी ने कराया था बहुत ही सुन्दर और दर्शनीय है हम नहा धोकर हम होटल से निकलकर गंगोत्री पुल पर आकर कुछ देर खडे होकर भागीरथी के तेज प्रवाह को देखते रहे और पास ही एक बड़ी चटटान को जो भागीरथी में पुल के पास ही खड़ी थी , सामने से भागीरथी की सुन्दर घाटी दिख रही थी यहाँ पर मुुुुशकिल से दो फुट ही गहरा पानी था पर प्रवाह इतना तीव्र है और पानी इतना ठंडा कि बस पूूछो मत। किसी बर्तन से दो डिब्बा पानी डालने के लिए भी हिमालय जैसी हिम्मत चाहिए । हम कुछ दुकानों के एक छोटे से बाजार से होकर गंगोत्री मंदिर पहुंचें वहाँ अपना माथा माता के चरणों में टेककर गोमुख के रास्ते पर आगे बढ गये रास्ता जो कि एक छोटी सी कच्ची पगडंडी के रूप में था हमारे साथ-साथ कुछ और श्रद्धालु भी चल रहे थे और बीच- बीच में जय गंगा मैया के जयकारे लगाते लोग उत्साह में और इजाफा कर रहे थे धीरे-धीरे चढाई बढ़ती जा रही थी और कुछ ही देर में सांस फूलने लगती पर एक बार थोडी देर आराम के बाद यात्रा फिर से शुरू हो जाती गंगोत्री से शुरू हो कर हमारा अगला पड़ाव 9 किलोमीटर की दूरी पर चीडवासा था और चीड़वासा के बाद 5 किलोमीटर की दूरी पर भोजवासा जो कि गंगोत्री से 14 किलोमीटर की दूरी पर हमारा दूसरा पड़ाव था जहाँ से गोमुख 4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है गंगोत्री से गोमुख की कुल दूरी 18 किलोमीटर दूर है जो हमें पैदल ही पूरी करनी थी इस तरह आना और जाना लगभग 36 किलोमीटर था और हमें रात होने से पहले वापस भी आना था और यही चीज़ यात्रियों को एक जगह रूक कर ज्यादा देर विश्राम नहीं करने देती है उस समय एक भी पक्का निर्माण पूरे रास्ते में नहीं था हाँ कुछ टेंट की व्यवस्था एक दो जगह अवश्य थी चीडवासा और भोजवासा के पास में जिनमें रात्रि विश्राम को गददे और कम्बल की व्यवस्था थी और एक रात्रि के लिए 80 रू में बिस्तर उपलब्ध हो जाता था हम युवा जोश पूरे जोर शोर चढाई कर रहे थे कुछ लोग खच्चरों के द्वारा भी यात्रा कर रहे थे दोनो और ऊंची ऊंची पहाड़ीया थी और चारों ओर से झरने आ रहे थे हम कुछ देर के लिए पिननी या बरसाती डालकर लकड़ी के डंडो पर बनायी अस्थायी दुकानों पर चाय ,मैगी ,बिस्कुट और नीम्बूपानी के लिए कुछ देर रूकते और आगे बढ जाते हालाँकि ये चीज़ें यहाँ अधिक रेट पर बिक रही थी पर इतनी ऊचाई पर इन्हे पहुंचाने में अत्यधिक श्रम लगता है और खच्चरों के द्वारा इनकी ढुलाई होती है तो इनके लिए दिया गया पैसा ज्यादा नही लगा जैसे-जैसे हम आगे बढ रहे थे वैसे-वैसे नजारे भी सुन्दर होते जा थे कहीं-कहीं तो रास्ते के नाम पर पेड़ के तने को काट कर डाला गया था ।जिन पर चलना जान को जोखिम में डालने जैसा था। रास्ते में कुछ विदेशी लोग वापिस आते मिले जिन्होने हम सामने से आता देखकर पूरी विनम्रता से प्रेम पूर्वक दोनों हाथ जोड़ कर नमस्ते कहा और जय गगा मैया कहा माता गंगा के लिए उनके चेहरे पर हमें अपार श्रद्धा के भाव मिले
चीडवासा के पास सुंदर नजारों का आनन्द उठाते हुएविदेशी यात्रियों ने हाथ जोड़कर नमस्ते कहा काली जैकेट मे मै
दोनो ओर की पहाड़ियों पर ऊपर बफ॔ थी जो पिघल कर झरनों के रूप में नीचे आ रही थी और झरने एक पानी की धारा के रूप में हमारी पगडंडी को पार कर भागीरथी में मिल रहे थे दूर से ही गंगोत्री ग्लेशियर बफ॔ से ढका नजर आ रहा था और घाटी में नीचे की तरफ़ जहाँ से हम आये थे गंगोत्री धाम कहीं गुम हो गया था एक तरफ खड़ी पहाड़ी जिसे काटकर पगडंडी बनी थी और नीचे भागीरथी तेज प्रवाह से बह रही थी शायद मौसम की मार से टूट कर भागीरथी में शमा गयी थी और करीब 25-30 फुट के इस रास्ते पर चीड़ के पेड़ों के तने काट कर बिछा दिये थे और रास्ते को जैसे तैसे चालू कर दिया था सभी यात्रियों की हालत देखते ही खराब हो रही थी और सभी अपने पाप और पुण्य का लेखा-जोखा देकर मन ही मन अपनी की गलतीयों की छमा माँग कर अपने पैर आगे बढा रहे थे भय से कभी आखें खुलती कभी-कभी बदं हो जाती कुछ अपना निर्णय बदल कर वापसी की राह पकड लेते खैर हमारी उम्र कम थी तो हमारा पाप पुण्य का गट्ठर भी कुछ हल्का था तो माॅ भागीरथी को मन ही मन याद कर पैर आगे बढा दिये और माँ ने भी हमें निराश नहीं किया बाँधा को पार कर आगे बढ़ गये चीडवासा में पहुँच कर कुछ आराम किया यहाँ चीड के पेड़ बहुतायात में है तो शायद इसी वजह से इसका नाम चीडवासा पड़ा है हवा हालाँकि बहुत ठंडी थी पर अब जैकट कि जरूरत नही थी सूर्य अपनी पूरी तेजी में मस्त था और हम मैगी के साथ पेट पूजा मे , हमने अपना आधा सफर तय कर लिया था । थोड़ी देर आराम के बाद यात्रा फिर से शुरू हो गई और अब की बार मंजिल था भोजवासा जो यहाँ से 5 किलोमीटर की दूरी पर है यहां भी एक और जादूई नजारा हमारा इन्तज़ार कर रहा था हम भागीरथी के साथ-साथ पगडंडी पर पर चल रहे थे जो काफी नीचे हमारे दायीं और बह रही थी और बायीं ओर एक करीब-करीब 500 मीटर लम्बी रेतीली पहाड़ी थी जिसमें बड़े बड़े पत्थर कुछ इस तरह से खड़े थे कि जरा से इशारे पर औरों को साथ लेकर बस कुछ ही सेकंडो में मौत बन कर आ जाय और ये काम यहाँ ऊपर घूमते हिरणो का एक झुंड बखूबी कर सकता था पर यहाँ हमारे आगे पीछे भाग कर अपनी जान बचाने का विकल्प खुला था और हमारा एक और मानना है कि जब मौत आयेगी तो दिल्ली या नोएडा की सडकों पर भी आ सकती है यहाँ भी तो रोज एक्सीडेंट होते ही है हम मन पक्का कर चलते रहे पर नजरें ऊपर रेत में टिके पत्थरों पर ही थी कि कब ये चलें और कब हम दौड लगाये दिल को तसल्ली तब मिली जब इसको पार कर लिया अब हमारा थकान के मारे बुरा हाल था चीड़ धीरे-धीरे खत्म हो गया था और रास्ते मेंं सिफ॔ छोटी-छोटी झाड़ियां ही बची थी और हल्की फुल्की घास थी बडे पेड़ पूण॔तया खत्म हो गये थे और भोजवासा पहुँचते पहुँचते लगभग एक बज गया था भोजवासा में भोजपत्र के कम ही पेड़ बचे है अब तो लाल बाबा का आश्रम भी वहाँ बन गया है परन्तु उस वक़्त वहाँ केवल टेंट और एक दो अस्थायी दुकानें थी आस पास के शानदार नजारे दिल को सुकून देने वाले थे पर पेड़ पौधों की की कमी के कारण ऑक्सीजन की मात्रा कम हो गई थी कुछ देर चलने पर ही सांस फूलने लगती दोनों और नंगी सलेटी पहाड़ियों पर ऊपर सफेद बफ॔ चाँदी के माफिक चमक रही थी और बादल कभी भी इन चोटियों को आखों के सामने से गायब कर देते थे गंगोत्री ग्लेशियर और सामने आकर पव॔तराज हिमालय की विशालता का अकाट्य सबूत दे रहा था हम गंगोत्री से 14 किलोमीटर की दूरी पर भोजवासा आ गये थे और आगे चलने पर अब घास और झाड़ियां भी खत्म हो गई और अब केवल पत्थरों के ऊपर से चलकर जाना था जिनपर एक के ऊपर दो चार पत्थर खड़े कर रास्ता बताया गया था जो कि सूरज ने हमको होटल में ही बता दिया था हम उन को देख-देख कर हम रास्ते पर आगे बढ़ते गये और गोमुख पहुँच गए
घास भी खत्म हो गई गोमुख से पहले पीछे गंगोत्री ग्लेशियर
गोमुख
गो-मतलब cow और मुख-मतलब mouth यानी गाय के मुख के समान
अब हम लगभग समुद्र तल से 4000 मीटर की ऊंचाई पर थे इसलिए आक्सीजन की कमी के कारण हल्का सिरदर्द व चक्कर से महसूस कर रहे थे साथ में बिस्कुट व पानी ही था जो कुछ एनर्जी दे सकता था वो ली और कुछ देर वही बैठ गए हम खुश थे कि शायद हम अपने गाँव से पहले लोग ही जो इस खुबसूरत जगह का आनन्द ले रहे थे गोमुख के पास एक दो लाल रंग के झंडे कुछ दूरी पर लगाये हुए थे और एक दो साधु वहाँ साधना में तल्लीन थे जब हम गोमुख पहुँचे तो लगभग दो बजे थे हमने माॅ गंगा को प्रणाम करके अपने फोटोग्राफ़ी के हुनर को आजमाया कुछ चार पांच और लोग भी वहाँ थे जो धीरे-धीरे वहाँ से निकल गये थे गंगा मैया बफ॔ के एक छोटे से मुख रुपी छिद्र से निकलकर बहुत ही तीव्र वेग से बह रही थी पर गहरायी मुश्किल से एक फिट ही होगी हम लगभग आधा घंटा से वही थे और चारों ओर के सुन्दर नजारों का आनन्द ले रहे थे मै अपने दोस्त मन्नु का फोटो गोमुख के साथ खींच ही रहा था कि ग्लेशियर का एक बड़ा टुकड़ा टूट कर गोमुख के पास गिरा और हम लोग डर गये जैसे माँ गंगा का साफ निर्देश हो कि बस बहुत देर हो गयी है अब निकलो यहाँ से, हम तुरन्त ही वापिस हो लिए रास्ते मे हम बहुत ही तेजी से नीचे उतर आये क्युकि रात हो जाने का डर हम पर हावी था और अंधेरा होने पर हम गंगोत्री से मात्र एक किलोमीटर ही दूर थे जो कि हमने एक घोड़े वाले के साथ चलकर पूरी कर ली जब हम वापिस आये तो होटल वाला लडका सूरज हमारी कुशल छेम लेने के लिए चिंतित था सूरज ने हमसे हमारी यात्रा की कठिनाइयों को सुना और खाने को पूछा हमारी हालत थकान के कारण ऐसी थी कि हम कमरे से निकलकर किचन तक जो कि होटल की छत पर ही था जाने में असमर्थ थे तो सूरज ने कमरे मे ही खाना खिलवा दिया और खाना खाते ही हम चारों खाने चित्त हो गये और सूबह देर से ऊठे सूरज के साथ एक दो फोटो ग्राफ लिए और गंगा जल भरकर गंगा मैया को प्रणाम कर वापसी के लिए जीप पकड ली । मन अब शांत था क्युकि उसे जो चाहिए था मिल गया था और हमने जिन सुन्दर नजारों की कल्पना की थी ये जगह उस से अधिक सुंदर थी ।
नोट-अब गोमुख की यात्रा करने वाले लोग उत्तरकाशी से यात्रा परमिट अवश्य लें ले,,,और सभी से विनम्र अनुरोध है कि साथ ले जाने वाले बिस्कुट, चिप्स, और अन्य सभी पालीथीन इत्यादि वहाँ ना डालें व साथ लाकर वापसी मे डस्टबिन में डालें
इसी के साथ आप सब से विदा आप को ये लेख कैसा लगा कामेंट में अवश्य बतायें
B. SINGH
गोमुख पर
Gaumukh |
1.अल्मोड़ा उत्तराखंड की यात्रा
https://traveladrug.blogspot.com/2018/06/blog-post.html?m=1
2.हरिद्वार मसूरी की यात्रा
https://traveladrug.blogspot.com/2018/10/b log-post.html?m=1
https://traveladrug.blogspot.com/2018/06/blog-post.html?m=1
2.हरिद्वार मसूरी की यात्रा
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बहुत रोचक व्रितान्त ।अब तो बहुत कुछ बदल गया है।हमारे विकास की आग ने हर स्थान को बदल दिया।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद,, सही कहा आपने,इस यात्रा के बाद भी मै दो बार और जा चुका हूँ हर बार और ज्यादा निर्माण देखने को मिल रहा है
जवाब देंहटाएंविजेंद्र भाई आपके रोचक और उत्कृष्ट लेखन ने हमें इस यात्रा का यथार्थ चित्रण करा दिया और मेरी गुजारिश है आपसे इसे आप अनवरत जारी रखें
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