Kedarnath yatra 2019

                केदारनाथ जी की यात्रा-2019
         
केदारनाथ मन्दिर भारत के उत्तराखण्ड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले मे है । यह मन्दिर अप्रैल से नवंबर माह के मध्‍य ही दर्शन के लिए खुलता है। परन्तु शीघ्र ही सरकार इसे सम्पूर्ण वष॔ के लिए खोलने पर कार्य कर रही है इस मन्दिर की आयु के बारे में कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है, पर एक हजार वर्षों से केदारनाथ एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थान रहा है। समुद्र तल से उँचाई 3600 मीटर के आस-पास है  राहुल सांकृत्यायन के अनुसार ये १२-१३वीं शताब्दी का है।पत्‍थरों से कत्यूरी शैली से बने इस मन्दिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण पाण्डव वंश के जनमेजय ने कराया था। आदि शंकराचार्य ने इस मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया था ।केदारनाथ धाम की यात्रा उत्तराखंड की छोटा चार धाम यात्रा के महत्वपूर्ण चार मंदिरों में से एक है। छोटा चार धाम यात्रा हर वर्ष आयोजित की जाती है। केदारनाथ यात्रा के अलावा अन्य मदिर बद्रीनाथ, गंगोत्री, और यमुनोत्री हैं। मंदिर के खुलने की तिथि हिंदू पंचांग की गणना के बाद ऊखीमठ में स्थित ओंकारेश्वर मंदिर के पुजारियों द्वारा तय की जाती है और शीतकाल में ऊखीमठ में ही भगवान केदारनाथ जी की पूजा होती है ।

             
मंदिर श्री केदारनाथ जी 
उत्तराखंड के चार धामों में से एक धाम बाबा केदारनाथ जी के दर्शन को मै पहले भी दो बार जा चुका हूँ पर 2013 में जो आपदा आयी उसके बाद एक बार भी नही जा सका, तो मन बडा व्याकुल था कि एक बार फिर से भोलेनाथ की शरण में जाया जाय । ये बात और है कि 2013 कि आपदा के समय भी घर से बैग पैक कर निकले तो थे केदारनाथ जी के लिए ही पर ग्रेटर नोएडा से रूठ बदल कर मनाली का हो गया, कहते हैं ना कि मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है हम शायद उस वक्त मनाली से वापिस वाया शिमला आ रहे थे जब हमे उस हादसे की जानकारी मिली थी ।
इस बार इरादा पक्का है कि केदारनाथ ही जाना है जो  ग्रेटर नोएडा वेस्ट से 450 किलोमीटर दूर है और अमित कसाना जी की 15 दिन पहले ही निकली टाटा नैक्सन उडान भरने के लिए तैयार है ,,,,

अगस्त के शुरुआत से प्रोग्राम बनाते-बनाते दो बार चेंज हो चुका था हर बार कोई ना कोई अडचन आ जाती है और नेक्सट संडे करते-करते तीन संडे जा चुके थे अब इस बार हम हर हाल में निकलने के मूड में थे पर गाडी मे तीन ही लोग हो रहे थे मै ,मेरे परम मित्र जय कुमार जी सैथली वाले, जो पहले भी मेंरे साथ गंगोत्री और कुल्लू मनाली जा चुके हैं और सौभाग्य से उन्हें ये घूमने का वायरस भी मैने ही लगाया है पहले वो इससे दूर ही थे और तीसरे अमित कसाना , रीलखा गौतम बुद्ध नगर यूूपी। हम तीन का प्रोग्राम पक्का था पर चौथे ने अभी भी धोखा दे दिया था और फिर अचानक ध्यान आया कि यार पीतम चौहान जी से भी बोला था चलने को पर उन्होंने बोला था कि कल आफिस में देखता हूँ बात करके कि छुट्टी दे रहे हैं या नहीं, पर मुझे इस बार छोड़ कर मत जाना ।मैने फोन से पूछा -क्या हुआ पीतम बाबू छुट्टी मिली क्या?? कल निकलना था, उधर से उसका जबाब सुन कर दिल खुश हो गया बोला- छुट्टी तो नहीं मिल रही पर मैने मैनेजमेंट को बोल दिया है, सुबह तक देंगे तो ठीक है वरना नौकरी छोड़ दूँगा । नौकरी तो दूसरी मिल जायेगी पर ये घूमने का मौका नहीं मिलेगा आकर दूसरी नौकरी ढूँढ लूँगा, पर मुझे छोड़ कर मत जाना इस बार--ये बात सुन कर ,एक बात तो पक्की हो गयी कि बंदा फुल रेडी है आगे भोलेनाथ की मर्जी ,और नहीं भी हुआ तो कल तीनों ही निकल लेगें ।रात मे ही बैग पैक हो गये अब सुबह पीतम जी को एक फोन और लगाया तो बोले- बस दोपहर में निकल लेते है आफिस में जरा सा काम है आधा घंटे का उसको निबटाकर और चाबियों को सोप कर 12 बजे आपके पास।मैने पूछा छुट्टी मिल गई क्या??? बोला-मैनेजमेंट समझ गया है कि अब छुट्टी दो या ना दो अब ये रूकने वाला नही है तो मान गया 😀👍।फिर अमित जी को फोन लगाया कि कहाँ हो ?? बोले नोएडा सेक्टर-5 जा रहा हूँ, मैने पूछा-क्यूँ, क्या हुआ??? बोले- गाडी की आर सी पडी है वो लेनी है गुस्सा तो बहुत आया पर कहाँ कुछ नही- कि यार जब कल नोएडा गये थे तो कल ही क्यूँ नही ले ली।खैर सहाब थोडी देर में जय कुमार और पीतम जी को लेकर उपस्थित हो गये ,आज भी निकलते-निकलते दिन के 2 बज गये है । गाडी अब गाजियाबाद और मुुरादनगर को पार कर गंगनहर के रास्ते पर फर्राटा भर रही थी। रास्ते में आगे की यात्रा की रूपरेखा तय हो रही थी रात में रूकने के लिए हरिद्वार का फैसला कोल्ड ड्रिंक और चिप्स के साथ 3-1 के साथ पारित हो गया है 200 किलोमीटर का सफर पूर्ण कर हरिद्वार पहुँचते-पहुँचते लगभग रात हो गई और हरकी पैड़ी को पार कर शान्ती कुंज से जरा पहले सीधे हाथ पर एक होटल पैराडाइस  बहुत ही किफायती दाम पर मिल गया क्यूँकि अगस्त का लास्ट है और सीजन अब आफ होने वाला है तो मात्र 500-500 रूपये मे दो शानदार रूम मिल गये सामान रूम में रख चारों एक रूम में इकट्ठे हो गये जब तक जय कुमार जी नहा कर बाथरुम से बाहर निकले उनके बैग की तलाशी भी हो गयी,भाभी जी ने पूरी सब्जी आचार के साथ बहुत ही संभाल के रखी थी ।
और मेरे बैग में रखी घर पर बनी मिठाई तो पहले से ही सबकी नजर में थी कुछ मालू पीतम जी के पास भी है तो आज के खाने का काम तो हो गया ।सबने खूब मिलके लपेटा और पेट पर हाथ फेर कर सुबह की रूपरेखा तैयार कर ली,  कि शान्ती कुंज के नारियल के लड्डू सुबह आगे के लिए साथ लिए जाऐंगे और शान्तिकुंज घूम भी लेगें, सुबह जल्दी उठना था चूँकि  मंजिल अभी काफी दूर थी और अगले दिन तकरीबन 230 किलोमीटर पहाडों में ही चलना था तो कमरे का ए सी आन कर  निद्रा में लीन हो गये ।
होटल पैराडाइस, नियर शान्ती कुंज हरिद्वार से निकलते आगे मै,सफेद शर्ट जय कुमार
पीछे नीली टीशर्ट पीतम चौहान और बीच में अमित कसाना जी 
होटल पैराडाइस हरिद्वार 

रजाई में घुस कर मोबाइल पर पीतम जी 30 अगस्त 2019

मैंने सुबह ही सबको जल्दी जगा दिया फिर नहा धोकर चाय पी और सामान गाडी में रखकर होटल छोड़ दिया बस कुछ आगे ही शान्तीकुंज था गाडी साईड लगाकर टोकन लिया और अंदर प्रवेश किया, नजारा बडा अद्धभुत और शान्ती पूर्ण था 
यहाँ की कैटीन भी नो पिराफिट नो लाॅस पर चलती है खैर भीड बहुत थी बहुत से लोग वहां ठहरे हुए थे नाश्ते का समय था फिर भी सब व्यवस्था बहुत ही दुरूस्त थी हवन चल रहे थे सब और हमारी सनातन संस्कृति की झलक मिल रही थी पर हमारा मुख्य उद्देश्य नारियल के लड्डू हमे नही मिल पाये । जिसमें समय लग रहा था और मंजिल काफी दूर थी तो वेट हम कर नही सकते थे एक सज्जन से पता चला कि चंदन का पेड अब नही है  तो कल्प वृक्ष और रूदाक्ष के वृक्षों के दर्शन कर आगे की राह पकड ली । 
शान्तिकुंज, हरिद्वार 
गाडी अब भक्ति संगीत के साथ ऋषिकेश की तरफ दौड़ रही थी ,ॠषिकेश पार कर  व्यासी में रूक कर नाश्ते मे पराठे दही लपेट लिए और आगे का रूख किया । चार धाम प्रोजेक्ट का कार्य तीव्र गति से चल रहा है पर ॠषिकेश से  देव प्रयाग तक लगभग सारा हिस्सा फोरलेन बन चुका है एक दो जगहों को छोड़कर कहीं रुकना नहीं पडा और पहले जहाँ गाडी तीसरे गीयर में मुश्किल से पडती थी वो अब चौथे गियर में स्पोर्ट मोड मे फर्राटा भर रही थी (नेक्सन के स्पोर्ट मोड के लिए रतन टाटा जी को दिल से धन्यवाद ) 
मेरी नजर अब किसी सुन्दर नजारे के तलाश में इधर-उधर भटक रही थी और शिवपुरी के पास एक ऐसा ही नजारा मिल गया। शिवपुरी वैसे तो राफ्टिंग के लिए प्रसिद्ध है जहाँ से ॠषिकेश तक राफ्टिंग करायी जाती है पर अब यहाँ कैंम्पिग और बान फायर पार्टीया भी खूब होती है और ये जगह इन सब के लिए आदर्श जगह थी 
गंगा के दूसरी ओर चाँदी से चमकते रेत का एक बडा सा किनारा था जो काफी दूर तक फैला हुआ था और समुद्र के किनारे जैसा आभास दे रहा था , उसके जरा से ऊपर कतार से बहुत ही खूबसूरत टेंट लगे हुए थे और पीछे कुछ घरों का एक छोटा सा गांव और उसके बाद हरे भरे ऊचे पहाड़ ,और सुन्दर सीढ़ीदार खेत ,,,और उस पार जाने को एक काफी पुराना तारों वाला पुल,,,,,,,,गाडी के ब्रेक अपने आप लग गये,,,और लगे सब मोबाईल मे रिकार्ड करने और फोटोग्राफी करने,,,,15 minute के  बाद होश आया की अभी बहुत दूर जाना है और भी सुन्दर नजारे मिलेंगे वहां तो एक बार फिर टाटा जी की जय बोल दी और आगे बढ गये ।
वो शानदार नजारा 
हमारी अगली मंजिल देवप्रयाग था जो ॠषिकेश से 70 कि.मी और हरिद्वार से लगभग 100 किलोमीटर दूर है
देवप्रयाग पंच प्रयागों में से सबसे महत्वपूर्ण है क्यूँकि यहाँ पर अलकनंदा और भागीरथी का मिलन होता है तब जाकर ही भागीरथी गंगा कहलाती है भागीरथी गंगोत्री ग्लेशियर से हर्षिल, भटवाडी,उत्तरकाशी और टिहरी होते हुए देवप्रयाग मे अलकनंदा से मिल जाती है और अलकनंदा में मंदाकिनी (जो केदारनाथ से आती है) रूद्रप्रयाग मे ,धौली गंगा विष्णु गंगा, सरस्वती आदि अन्य सहायक नदियां देवप्रयाग से पहले ही मिल जाती है देवप्रयाग में स्नान करना सभी पापों से मनुष्य को मुक्त करने वाला है इस बार देवप्रयाग की कुछ यादगार फोटो निकालने की इच्छा शुरू से थी तो गाडी के एक्सीलेटर पर मेरे पैर का दबाब अपने आप बढ रहा है मै जल्दी से देव प्रयाग पहुँचना चाहता था तो पीछे की सीट से जय कुमार जी का कामेंट आ रहा था यार जरा धीरे चला-ट्रेन नही छूट रही है हमारी,और जब भी डूबता है तो तैरने वाला ही डूबता है,यहाँ से गाडी गिरी तो ॠषिकेश तक राफ्टिंग हो जाएगी ,और ना जाने क्या-क्या ? और पीतम जी भी उनकी हाँ में हाँ मिला रहे है ताल ठोक के , पर मेरे दिल मे क्या चल रहा है वो इस से अवगत नही है खैर मै सब की बातों को नजरअंदाज कर रहा हूँ और मै सिर्फ और सिर्फ ड्राइविंग पर ध्यान दे रहा हूँ कयूँकि यहाँ सावधानी हटी और हलवा पूडी बटी,,,,और वो भी आप नही खा सकते ।😀😘
बातों ही बातों देवप्रयाग के दर्शन हो गए और हमने सडक के किनारे गाडी रोक दी जहाँ से संगम का अद्धभुत नजारा दिख रहा था और कुछ देर अलकनंदा और भागीरथी के संगम को निहारते रहे ।दोनों नदियों का जल एक जगह मिलने से पहले अलग-अलग रंगो मे दिख रहा है और सामने बने होटल की लाल बिल्डिंग एकदम अभी गिरी वाली पोजीशन में बडी मनभावन लग रही है जिसका फोटो निकाला भी है काफी देर ऊपर से सडक किनारे बैठे हम संगम का आनंद लेते रहे संगम जो यहाँ से काफी नीचे है शायद वहाँ से ऐसा नजारा नही मिल पाता । जब मन थोडा तृप्त हो गया तो फोटो निकालने शुरू किये। जो अभी तक गाडी थोडी सी तेज चलाने पर चार बातें सुना रहे थे वो अब देवप्रयाग की सुन्दरता मे कसीदे पढ रहे थे और मुझे धन्यवाद दे रहे थे

देवप्रयाग संगम,अगस्त 2019

देवप्रयाग रोड से दिखता शानदार नजारा 

सभी के मन प्रसन्नता से सारोबार थे अब आगे निकलना था और हमारी अगली मंजिल था श्रीनगर , कश्मीर वाला नहीं गढवाल वाला ,जहाँ से हमें अपने जरूरी सामान की खरीदारी करनी थी हम कार से भी एक बजट यात्रा ही करते है और हमे खाने का खर्च कम करना था तो सामान की सारी लिस्ट देवप्रयाग से चलकर श्रीनगर से पहले तक तैयार हो गयी है अब खरीदारी करनी है श्रीनगर एक अच्छा बाजार है तो सभी सामग्री खरीद ली गयी है चीनी, चायपत्ती,दूध बिस्कुट ,ब्रेड, चावल, मैगी, पाशता, मसाले, फ्राई पेन, खीरा टमाटर, प्याज,अदरक और नमकीन ,चिप्स, कोक ,दो चाकु ,चाय छननी,डिसपोजेबल पेपर कप,व पेपर पलेट ,चम्मच ,,,अब हमारे पास चाय, सैंडविच और नाश्ते का पूरा प्रबंध है जो पीतम जी और मैने बहुत ही तीव्रता से जुटा लिया है और गाडी अब आगे बढा दी है अगले पडाव रुद्रप्रयाग की और। श्रीनगर से चलते ही कोक चिप्स और बिस्कुट का दौर चल निकला और अब सब मस्ती के मूड में थे धारी देवी के सुंदर नजारे को देखकर सभी अभीभूत हो गये अलकनंदा के बीच नदी में बने मंदिर और उसके इतिहास को जानकर सभी चकित थे

जय माता धारी देवी 

मै चूँकि कई बार आ चुका तो गाइड की सारी भूमिका मुझे ही निभानी पड रही थी गाइड के साथ-साथ मेरी एक अन्य भूमिका भी रहती है वो है ड्राइवर की ,पहाडी रास्ते थोडा रिस्की रहते हैं और मुझे यहाँ गाडी चलाने का अच्छा अनुभव है तो गाडी में किसी अन्य को नही चलाने देता हूँ । काफी ऊल जलूल बातों से समय कटता रहा और रुद्रप्रयाग आ गये ।जो अलकनंदा और मंदाकिनी का संगम है अलकनंदा बदरीनाथ जी से और मंदाकिनी केदारनाथ जी से आकर यहाँ मिलती है और दोनो का संगम यहाँ होता है । बदरीनाथ जी और केदारनाथ जी दोनों के रास्ते यहाँ से अलग-अलग हो जाते है बस यहाँ भी एक छोटा स्टे फोटो निकालने के लिए लिया और गाडी मंदाकिनी वाले रास्ते पर ले आगे की यात्रा शुरु कर दी जो अब केदारनाथ जी तक मंदाकिनी के साथ-साथ ही होनी है ।
रुद्रप्रयाग संगम 
हम आज हर हाल में सोन प्रयाग या उसके  आस-पास पहुँचने की कोशिश में है पर अब चाय की तलब लग रही है 4 बजे के आस-पास ये तलब लगती ही है हम तिलवाडा घाटी से गुप्तकाशी की तरफ बढ ही रहे थे कि सडक के पास ऊपर से गिर रहे एक झरने ने हमारा ध्यान खीच लिया और गाडी रूक गयी ये हमारे चाय बनाने के लिए एक आदर्श जगह थी मंदाकिनी के साथ के किनारे सडक पर गाडी खडी कर झरने के साफ पानी से खाली बोतलें भर ली गई और पीतम जी जो अभी तक मेरी बगल वाली सीट पर कंडक्टर की भूमिका में थे अब एक फाइव स्टार के कुक की भूमिका बखूबी संभाल चुके थे । गाडी की डिग्गी खुलकर सारा सामान गाडी की पिछली ट्रे पर सज चुका था,,,ईंटे लगाकर चूल्हे पर जय कुमार जी सैथली वाले चाय बनाने में मशगूल थे और पीतम जी खीरा प्याज और टमाटर काटकर सैंडविच तैयार कर-कर के रख रहे थे तभी दो तीन प्यारे बच्चों ने एक कामेंट भी पीतम जी को दे दिया---ओये देख इसने तो पूरी दुकान लगा ली, और हम सब हँस पडे । चाय ,सैंडविच लपेट कर आग अच्छे से बुझायी ,ईटे वापस रखी, बिस्कुट और अन्य पालीथीन गाडी में वापिस रखी और देखा कि कहीं कोई गंदगी तो नही फैली , यहाँ तक कि खीरे के छिलके तक भी पीतम जी ने नीचे नही गिरने दिये , भाई ने अच्छे कुक के साथ साथ एक अच्छे प्रकृति प्रेमी का भी किरदार निभा दिया  और फिर मैने भी गाडी का एक्सीलेटर बढा दिया ।
गुप्तकाशी से पहले, तिलवाडा घाटी में मंदाकिनी के किनारे जय कुमार जी की चाय का आनंद लेते हुए-31 अगस्त 2019
मंदाकिनी के रमणीक किनारे के साथ चलते-चलते कुंड आ गया ,कुंड (जहाँ से ऊखीमठ और चोपता को रास्ता कटता है) को नदी पार कर गुप्तकाशी में प्रवेश कर लिया ।शाम हो चली है और हम सोनप्रयाग या फाटा तक अवश्य पहुँचना चाहते हैं गुप्तकाशी से निकलते ही शाम हो चुकी है और अब हम धीरे-धीरे फाटा की और बढ रहे है बरसात का मौसम वैसे तो खत्म हो चुका है पर यहाँ कभी भी बरसात हो जाती है रोड भी अब धीरे-धीरे कीचड वाला होता जा रहा है पहाडियों में से कहीं कहीं पानी भी टपक रहा है, झरनों का पानी रोड पर आकर कीचड़ कर रहा है चार धाम आल वेदर रोड की वजह से सडक निर्माण का कार्य तीव्र गति से चल रहा है जिससे मिट्टी और पानी मिलकर कीचड़ का निर्माण कर रहे है गाडी एक दो बार बडी मुश्किलों से इसमें से पार हुई है एक कुशल ड्राईवर इसको चला रहा है वरना शायद कीचड़ में हम भी गाडी से उतर कर धक्का मार रहे होते । कुछ ही दूर और चले की अंधेरा हो गया और अब रास्ता थोडा डरावना हो गया है रोड पर लाईट नही है और काफी दूर-दूर चलकर किसी होटल की लाइटें नजर आ रही है सितम्बर शुरू होने वाला है तो यात्री भी बहुत कम है मुश्किल से कोई गाडी मिल रही है  हम अभी फाटा के आस-पास है और सोनप्रयाग अभी यहाँ से 18 से 20 किलोमीटर दूर है और वहाँ तक पहुँचाना मुश्किल लग रहा है और सभी का मशवरा है कि अब रुक लिया जाए ।सडक के पास ही एक होटल देखकर गाडी रोक दी ।अमित जी गये रेट पता किया और आकर बोले गाडी आगे लो ,हमने पूछा क्या हुआ?? बोले--- 3000 रुपये माँग रहा है दो रूम के । होटल वाले ने रात का समय और आस-पास होटल ना देख मौके का फायदा उठाना चाहा हमने गाडी आगे बढा दी ।अब हल्की बारिश शुरू हो गई है और सभी एक ही मशवरा दे रहे है कि बारिश में पत्थर गिर सकते हैं और रात का समय है झरनों का शोर इस डर को और बढा रहा है तो जहाँ भी अब जगह मिले रूक जाओ,,,,अभी थोडा ही चले थे कि सडक किनारे ही एक होटल और मिल गया इस बार मुझे अपने अनुभव का इस्तेमाल करना था होटल के जमीनी तल पर ही किचिन था जो अब यात्रा कम होने की वजह से दिन में रैस्टोरेंट और रात में होटल में रूकने वालों का खाने का एक मात्र जरिया था नाम था महादेव होटल एंड रैस्टोरेंट । हमने गाडी रैस्टोरेंट के सामने रोकी तो एक सज्जन पुरुष आये और खाने का आफर किया और पुछा-सोनप्रयाग जा रहे हो! हमने हाँ में गर्दन हिला दी ,बोले सुबह चले जाना अभी यही रुक जाओ बरसात हो रही है रास्ता रिस्की है यहाँ से है यो 10-12 किलोमीटर ही पर सुबह आधा घंटे पहले निकल जाना।हमने झूठ मूठ सोनप्रयाग ही जाकर रूकने को बोला तो उसने सोचा कि इनका रुकना मुश्किल है तो एक बार फिर से उसने रूम देख लेने कि रिक्वेस्ट की जो हमनें मान ली । अब हम गाडी से उतरकर रैस्टोरेंट में आ गये फिर कमरे के रेट पता किया तो 1200 मे दो बताया ।हमने भी एक थ्री बेड की मांग रख दी , जो 800 रुपये में हमने प्रथम तल पर फाइनल कर लिया, खाने का आर्डर देकर ,गाडी से जरूरी सामान निकाला और रूम में इकट्ठे हो गये कुछ देर बातों का दौर चला,खाना खाया और फिर सब बिस्तर में समा गये।  

सुबह जब मेरी आँख खुली तो एक शानदार नजारा हमारे सामने था रात को कुछ अँधेरे की वजह से दिख नहीं रहा था बस हम आईडिया लगा रहे थे कि होटल सेफ जगह पर है और उँची और खडी पहाडियों से थोडा दूर है ठंडी काफी थी पर फिर भी में बिस्तर छोड़ कर होटल की बालकनी में आ गया और शायद ये मेरी जिंदगी की कुछ खुबसूरत सुबहों में से एक होने वाली थी। प्रकृति ने किसी कुशल चित्रकार की तरह अपने कैनवास को सजाया हुआ था ।

एक अलसायी सी सुबह,,,,,,                       

जल्दी उठ जाने का पुरस्कार के रूप प्रकृति आज कुछ ज्यादा ही मेहरबान थी,,,,,होटल की बालकनी में आते ही सामने एक शानदार नजारा था,,हरे भरे सीढ़ीदार खेतों में एकदम दूध से सफेद कुछ एक जैसे बने कैम्प नुमा कमरों में कुछ लाइटें जुगनुओं के मानिद टिमटिमा  रही है ,,,,बारिश अभी अभी  बंद हुई है और सारा समा भीगा भीगा सा है । कोई-कोई बूंदे जो पेड़ो के पत्तीयो पर घर बनाये है वो हल्की बहती हवा से  कभी भी नीचे टपक जाती है हल्की धुंधली सी घटाएँ पहाड़ों  पर घर बनाकर उनको अपने आगोश में लपेट कर शांत सुलाये हुए है पहाड़ियाँ जो दूर तक फैली हुई है एकदम मौन है,,,,,,,, हर तरफ एक अजीब सी शांति है ,,,एक अजीब सा शुकून है प्रकृति से संवाद स्थापित करने के लिए ये उचित समय है मै एक कप चाय के साथ बालकनी में खड़ा होकर प्रकृति से बात करना चाहता हूँ पर चाय अभी मिल नही सकती है । सभी होटल वाले अभी सोयें हुए है ,,,,,,,,  
केदारनाथ जी की यात्रा मे
निकट - फाटा, सुबह 1 सितम्बर 2019

होटल महादेव , केदारनाथ जी के रास्ते मे 







होटल महादेव से सामने का नजारा फाटा,उत्तराखंड 31अगस्त 2019

कुछ देर बाद पीतम चौहान जी भी उठ गये है वो भी अब विडियो बनाने में मशगूल हैं और बार-बार अपने फेफडों को ताजी ऑक्सीजन से भर रहे है हम दोनों की बातें सुनकर बचे दोनों मुर्गे भी बांग देने लगे हैं पर अभी  अपने दडबे को छोड़ कर बाहर निकलने के मूड में नहीं  है दिन अब पूरी तरह निकल गया है अब स्नान की तैयारी है गीजर आनॅ कर एक-एक कर नहाना शुरू कर दिया है होटल वाला भी जग गया है हमने उसे चार कप चाय के लिए बोल दिया है नहा कर जैसे ही रेडी हुए चाय आ गयी। कुक साहब ने सैंडविच मिनटों में तैयार कर दिये, नमकीन, बिस्कुट और सैंडविच के लपेटे ।फिर सामान समेट कर नीचे आ गये । होटल का पेमेट किया और सोनप्रयाग का सफर एकबार फिर भक्ति संगीत के साथ शुरू हो गया । जब से 2013 में केदारनाथ जी में आपदा आयी है तब से निजी वाहन कवल सोनप्रयाग तक ही जाते है और आगे गौरीकुण्ड तक जीप से ही जाना पडता है । 
सूर्य देव के अभी दर्शन नहीं हुए हैं आगे जातें ही पहाडियों से गिरते झरनों और रोड की हालात को देखकर भोलेनाथ को शुक्रिया अदा किया कि अच्छा हुआ रात वही गुजार ली वरना मुश्किल हो सकती थी
कुछ और शानदार और जानदार नजारों के दर्शन सीतापुर रामपुर से कुछ पहले मिले जहाँ ढलवाँ पहाडियों पर बहुत बडे क्षेत्र में सीढ़ीदार खेती है और चारों और सुन्दर गिरते झरने है कुछ फोटो निकालने के बाद सोनप्रयाग आ गये यहाँ पर गाडी पार्किंग में खडी कर गौरीकुण्ड के लिए जीप पकड ली ,किराया 6 किलोमीटर के लिए 20 रुपये प्रति व्यक्ति था ,,कुछ ही देर में हम गौरीकुण्ड में थे जहाँ से अब केदारनाथ जी मंदिर के लिए 16 किलोमीटर की पैदल यात्रा शुरु करनी थी,,,,पर मन पुराने गौरीकुण्ड को ढूँढ रहा था जो अब बस कुछ ही बचा था केवल मुख्य बाजार वाला हिस्सा, 
गौरीकुण्ड अपने प्रारम्भिक दौर में जैसा कभी रहा होगा ऐसा था पहले कि तरह, ना पक्के घाट का पता ना ऊपर की छत व आसपास के निर्माण का ,केवल एक गड्ढे के रूप में एकत्र गर्म पानी का स्रोत,,मैने ऊपर खडे होकर ही एक फोटो निकाल लिया, प्रकृति ने अपने आप को रिपेयर कर लिया था ,,,
गौरीकुंड
हजारों पुरानी यादें जेहन में दौड रही थी जैसे कोई चलचित्र आंखो के सामने दौड रहा हो, मेरी पहली केदारनाथ जी की यात्रा  मेरे सबसे पुराने घुममकड मित्र मनवीर के साथ हुई थी गौरीकुण्ड उस समय बहुत ही छोटा सा था और सभी गाडियाँ गौरीकुण्ड तक चली जाती थी, और रामबाडा में तो बस बरसाती पिन्नी की बनी कुछ दुकानों को छोड़कर कुछ भी पक्का नही था, पर जब कुछ वर्षों बाद गया तो रामबाडा में भी काफी पक्का निर्माण हो गया था और फिर सब कुछ आपदा में खत्म हो गया । तकरीबन 9 बजे हमने अपनी पैदल यात्रा भोलेनाथ का नाम लेकर शुरू कर दी , हम चारों जोश में थे इतने सुन्दर और खुबसूरत झरनों और पहाडियों को देखकर  सभी रोमांचित हो रहे थे पर मेरा मन बार बार कहीं और ही गोते लगा रहा था अभी हम पहले वाले पुराने रास्ते पर ही चल रहे थे आज सितम्बर 2019 का पहला दिन है और यात्रा समाप्ती कि और है तो कम ही यात्री मिल रहे है वो भीड वाला माहौल नही है सभी फोटो खींचने और विडियो बनाने में मस्त है इस पैदल यात्रा का मजा शब्दो में बयां करना मुश्किल है । कुछ झरने इतने खूबसूरत है कि आप को सम्मोहित कर लेते है और आप को कुछ देर के लिए यात्रा करने से रोक देते है,,,कुछ देर रूकने के बाद आप को याद आता है कि आपकी मंजिल  तो अभी काफी दूर है,,,इसी को पहाड़ो का सम्मोहन कहते हैं ,,,,,



रास्ते के खूबसूरत नजारों को देखकर खुश होते दो प्राणी जय कुमार और पीतम जी 
पीतम चौहान जी पीठ पर बैग लटकाकर सब से आगे है फिर अमित जी और मै एक बडे बुजुर्ग की तरह सबको समझा बुझा कर धीमा चलने के लिए बार-बार बोल रहा हूँ पर पीतम जी और अमित जी चाल कम नही हो रही है मै कभी नीम्बू पानी, कभी मैगी और कभी फ्लेवरड दूध के नाम पर सबको रोक लेता हूँ अभी 4 किलोमीटर ही चले है व जगल चटटी ही आया है और जय कुमार जी की हालत अभी से ढीली हो गयी है पर फिर भी धीरे-धीरे चल रहे है मैने उनकी स्पीड 100 से घटा कर 20 कर दी है रास्ते के सुंदर नजारे देखकर उनका मन बट जाता है मै हर बार एक नये नजारे को कुछ देर दिखा कर उन्हें रेस्ट करा देता हूँ धीरे-धीरे चलते हुए हम 6 किलोमीटर भीमबली आ गये है और रास्ता मंदाकिनी नदी के ऊपर से पुल बना कर दूसरी तरफ से बना दिया है ।
जाते हुए यात्री 

मै और जयकुमार जी मैगी का लुत्फ उठाते हुए 

नीली शर्ट में अमित कसाना जी आगे जातें हुए यही से रास्ता मंदाकिनी को पार कर दूसरी तरफ़ चला गया 

मंदाकिनी का प्रवाह यहाँ बहुत तेज है, पुल पार कर नया रास्ता 

रामबाडा का तो केवल नाम ही शेष रह गया है हमने बैठकर कुछ देर आराम किया फिर पुल पार कर चढाई शुरू कर दी ।जय कुमार जी के लिए घोडा करने का प्रयास किया पर उन्होंने मना कर दिया , चाल धीमा है पर पर धीरे-धीरे चल रहे है ये एक कठिन चढाई है तो पीतम चौहान जी जो पहले तेज-तेज चल रहे थे उनकी चाल भी अब धीमी हो गयी है मै एक पत्थर पर योग का नाटक कर रहा हूँ ताकि जय कुमार जी में थोडी जान आ जाये,,,,फिर थोडी देर बाद सबने चलना शुरू कर दिया हल्के फुल्के मजाक चल रहे है, कष्ट तो है पर आनंद भी है ये एक आधार वाक्य हो गया है जिस पर सभी सहमति मे सिर हिलाते है । भोलेनाथ को भी भक्तों के कष्ट का आभास हो गया है और उसने भी हल्की बूंदाबांदी शुरू कर दी है हम जल्दी से एक मैगी की दुकान में घुस गए क्योकि हम चारों में से किसी ने भी बरसाती या रेनकोट नहीं खरीदा था । बारिश आये तो उसका आनंद लो उससे बचना किसलिए है पर मोबाइल पानी में ना भीग जायँ इसलिये बचना पड रहा है बारिश जब तक तेज रही तब मैगी खायी जब हल्की हो गई  तो मैगी वाले भाई से पिननी लेकर मोबाईल और पैसे वगैरह उसमे रख कर फिर एक बार चढाई शुरू कर दी है ।
योग मुद्रा में 

घटायें और हल्की बारिश शुरू हो गई है ये तो यहाँ रोज का काम है 
बडी लिनचोली को आते आते पीतम जी भी थके हुए नजर आने लगे मौसम खराब होने पर हैलीकॉप्टर जो बार बार चक्कर लगा रहे थे वो भी अब आने बंद हो गये है हेलीपैड अगस्त्यमुनि और फाटा में है जहाँ से हैलीकॉप्टर केदारनाथ जी तक उडान भरते है ठ॔ड हो जानें के कारण चलना भी थोडा आसान हो गया है आगे कुछ जगह बर्फ देखकर कुछ ताजगी जरूर लौटी, बडी लिनचोली एक खूबसूरत जगह है और गौरीकुण्ड से 11 किलोमीटर की दूरी पर है यहाँ से केदारनाथ जी अब 5 किलोमीटर ही शेष है जहाँ से नदी पार पुरानी पगडंडी और पूरी फिसली हुई पहाडी नजर आ रही है और गरूड चट्टी के भी दर्शन हो रहे है धीरे-धीरे आगे बढ़ाते हुए अब हमे रूद्रा पॉइंट  नजर आ रहा था जहाँ से बेस कैम्प तक चढाई कम हो जाती है मैने जयकुमार जी और पीतम जी को समझा दिया कि बस वहां तक ही चढाना है बस फिर तो उतरना था मंजिल दिख गई तो शरीरों में जान लौटने लगी ये तीन किलोमीटर भी एक घंटा खा गयी हमारा, पर धीरे-धीरे मंजिल पा ही ली ,अब जय कुमार जी को अमूल की दो दूध की बोतल पिला कर राहत दी गयी हमने भी एक एक बोतल दूध पिया और रूद्रा पॉइंट पर थोड़ा रेस्ट भी कर लिया ।मंजिल अब हाथ आ चुकी थी, एनर्जी वापस प्राप्त करने के बाद मंदिर की और राह पकड ली,,,अब मंजिल दिख रही है जो थी तो दो किलोमीटर दूर पर अब हर पल बढते कदमों से और निकट आ रही थी यहाँ निर्माण कार्य तीव्र गति से चल रहा है और बेस कैम्प से केदारनाथ तक सब समतल सा होने के कारण सब साफ नजर आ रहा है 

मोबाइल के सिग्नल ढूँढते दो प्राणी
जयकुमार और अमित कसाना 

रास्ते में पडी बर्फ 

रूद्रा पाइंट पर एनर्जी लेते चार जाबांज 
निर्माण कार्य तीव्र गति से चलता हुआ, जेसीबी मसीन के सामने दिखता केदारनाथ मंदिर ,और मंदिर के पीछे की तरफ दिखता बाढ का कटाव

लगभग  5 बजे होगे जब हम हेलीपैड पार कर केदारनगरी में प्रवेश कर गये सभी के चेहरे पर पैदल पहुचने की खुशी साफ थी मंदिर के सामने जो संकरी गलियों से जो रास्ता हुआ करता था जिसके दोनों ओर दुकानें और आश्रम हुआ करते थे उनकी जगह बहुत ही चोडा रास्ता सीढियों के रूप में ऊपर मंदिर तक जा रहा था नीचे से मंदिर का केवल ऊपरी हिस्सा जी नजर आ रहा था और अचानक से आयी घटाओ ने मंदिर के पीछे की पहाडियों को ढक कर एक सफेद स्क्रीन लगा दी है 

केदारपुरी मे प्रवेश 

और मंजिल मिल गई, सीढियों से दिखता केदारनाथ मंदिर
हम एक एक सीढी ऊपर चढते हुए मंदिर के चारों ओर बने समतल चबूतरे पर आ गये यात्रीयो की संख्या कम ही थी कुछ देर आराम से चारों ओर घूमते हुए फोटो और विडियो बनाने में मस्त रहे ,सभी का मन श्रद्धा से सरोबार था इतनी मुश्किलों को उठा कर दर्शन जो हुए थे जय कुमार जी थोडा बैठ कर एक नयी उर्जा से ओत प्रोत नजर आये अब वो सहज बातें कर रहे हैं और उनकी साँस जो फूल रही थी वो अब बंद हो गयी थी अब दर्शन करने की बारी थी , भीड थी नहीं तो पहली बार कुछ देर आराम से दर्शन करने को मिल गये ।
केदारनाथ 

ऐसी मान्यता है कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। इसके लिए वे भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे, लेकिन वे उन लोगों से रुष्ट थे भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए वे वहां से अंतध्र्यान हो कर केदार में जा बसे। दूसरी ओर, पांडव भी लगन के पक्के थे, वे उनका पीछा करते-करते केदार पहुंच ही गए। भगवान शंकर ने तब तक बैल का रूप धारण कर लिया और वे अन्य पशुओं में जा मिले। पांडवों को संदेह हो गया था। अत: भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाडों पर पैर फैला दिया। अन्य सब गाय-बैल तो निकल गए, पर शंकर जी रूपी बैल पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए। भीम ने उन्हें पहचान लिया और बलपूर्वक पकडना चाहा, लेकिन बैल भूमि में अंतध्र्यान होने लगा। तब भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया। भगवान शंकर पांडवों की भक्ति, व संकल्प देख कर प्रसन्न हो गए। उन्होंने तत्काल दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया। उसी समय से भगवान शंकर बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शंकर बैल के रूप में अंतर्ध्यान हुए, तो उनके धड़ से ऊपर का भाग काठमाण्डू में प्रकट हुआ। अब वहां पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है। शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मद्महेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए। इसलिए इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को पंचकेदार कहा जाता है। यहां शिवजी के भव्य मंदिर बने हुए हैं।और सभी उत्तराखंड राज्य में है 
पूजा का समय

केदारनाथ जी का मन्दिर आम दर्शनार्थियों के लिए प्रात: 6:00 बजे खुलता है।

दोपहर तीन से पाँच बजे तक विशेष पूजा होती है और उसके बाद विश्राम के लिए मन्दिर बन्द कर दिया जाता है।

पुन: शाम 5 बजे जनता के दर्शन हेतु मन्दिर खोला जाता है।

पाँच मुख वाली भगवान शिव की प्रतिमा का विधिवत श्रृंगार करके 7:30 बजे से 8:30 बजे तक नियमित आरती होती है।

रात्रि 8:30 बजे केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग का मन्दिर बन्द कर दिया जाता है।

शीतकाल में केदारघाटी बर्फ़ से ढँक जाती है।ऐसी स्थिति में केदारनाथ की पंचमुखी प्रतिमा को ‘उखीमठ’ में लाया जाता हैं। इसी प्रतिमा की पूजा यहाँ भी रावल जी करते हैं।


मंदिर केदारनाथ जी  
दर्शन के उपरांत हम मंदिर से बाहर आ गये।जय कुमार जी अब बडे आराम से थे और मुझ से केदारनाथ पहले कैसा था उसकी जानकारी ले रहे थे पर मेरा मन मंदिर के पीछे वाले हिस्से को देखने को व्याकुल था पहले जब हम लोग यहाँ आये थे तो सारे रास्ते भीगते हुए आये थे हम घूमते-घूमते मंदिर के पीछे वाले हिस्से की तरफ चले गये थे जहाँ पर एक आश्रम में हजारों काले पहाडी कौवे अपनी कर्कश आवाज में काँव-काँव का शोर मचाये थे हम जब आश्रम में गये तो हमे एक साधक जो कोवो को कुछ खिला रहा था आश्रम में अन्दर बुला ले गये अन्दर एक जगह धुने में आग जल रही थी एक सतं विराजमान थे उनहोंने हमे आग के पास बैठने को कहा-और सेवादार को चाय का प्रबंध करने को बोला हम सर्दी से उस वक्त कांप रहे थे पर आग के पास बैठते ही जान मे जान आ गई ।थोडी देर में चाय के साथ नमकीन और नारियल की बरफी आ गयी जो बहुत ही स्वादिष्ट थी और चाय से एक अलग तरह की खुशबू आ रही थी जो शर्तिया हमारी चाय पत्ती की खुशबू से भिन्न थी जिसे पीते ही शरीर में अचानक से गरमी का संचार हुआ तो कंपन दूर होकर हम अब सामान्य अवस्था में थे । महात्मा जी बहुत ही मृदु भाषी थे उनहोंने हमसे पूछा कि हम हम लोग कहाँ से है और इधर कैसे आ गये है??
हमने बताया कि हम लोग दिल्ली के पास के है और ब्रहम कमल देखना चाहते थे इसलिये हम मंदिर के पीछे की तरफ आ गये थे,,,,,,सतं जी ने बताया कि ऊपर की पहाडियों पर ब्रहमकमल होता है पर मौसम खराब है आप लोगों का जाना उचित नही है बाबा केदारनाथ जी की पूजा के लिए वही से आता है और अभी यहाँ उपलब्ध है उनहोंने आश्रम में ही ब्रहमकमल सेवादार से मँगवा कर पहली बार हमे दर्शन करा दिये ।उन्होंने हमे केदार सिला के बारे में भी बताया कि किस तरह पहले कि आपदा में ये सिला ऊपर से बहकर आकर मंदिर के पीछे रुक गयी थी और मंदिर को नुकसान होने से बचा लिया था और भी ढेर सी बातें हुई और फिर हमने वापिस लौटने के लिए बाबा जी से आज्ञा ली और वापिस आ गये । 2013 की आपदा के बाद सबसे पहले ये विचार ही दिमाग में आया कि उनका क्या हुआ होगा????और तभी से मन बैचैन सा था । अब वापिस आते हैं इस यात्रा पर ,उन तीनों को आभास नही है कि मैं मंदिर के पीछे क्या खोज रहा हूँ और कयूँ जो एक दो महात्मा मिल रहे है उनसे मंदिर के पीछे की तरफ जो आश्रम थे उनका क्या हुआ???पूँछ रहा हूँ ।

मंदिर के पीछे की तरफ केदार सिला है जो पहले भी एक बार मंदिर को बचा चुकी है और अब दूसरी बार , आश्रमों का कहीं नामो-निशान नहीं है और कुछ दूर जाकर एक गोलाकार दीवार बना दी गयी है जो पानी के बहाव को मंदिर की और आने से रोकेगी जिस पर लाईट लगाने का कार्य चल रहा है,,,हेलीपैड के पास यात्रीयो के रकने का प्रबन्ध किया गया है 250 रुपये में डोरमैटरी की सुविधा है सब चीज दुबारा से बहुत ही खूबसूरत और व्यवस्थित तरीके से बसायी जा रही है पर तबाही के निशान अभी रामबाडा से मंदिर तक बिखरे पडे है  पुरानी पगडंडी कई जगह तो खिसककर पूरी तरह से  गायब हो गयी है । 
अब वापिस लौटने का प्लान है तो सबसे पहले सबसे कमजोर कडी जय कुमार जी से पूछा गया कि यही पर  रुकना है या वापिस चलना है जय कुमार जी रूकने के लिए तो तैयार नहीं है शायद मन में ये डर बैठ गया है कि रात में ऑक्सीजन की दिक्कत ना हो जाये या मौसम खराब है तो कहीं पहले जैसा हाल ना हो जाय। तो फैसला हुआ कि 5 से 6 घंटे में आराम से नीचे ऊतर जाऐंगे और गौरीकुण्ड जाकर आराम कर लेगें । जय कुमार जी से घोडा करने के लिए हमने काफी अनू- विनय की पर वो राजी नहीं हुए बोले उतरना ही तो है आराम-आराम से उतर जाऊँगा ,अब नये रास्ते पर लाइटें लग गई है तो रात में उतरने में भी ज्यादा भय वाली बात नही है पर यात्री कम है तो दूर दूर कोई यात्री मिल रहा है रास्ते मे कुछ जगहों पर अंधेरा होने के कारण मोबाइल की टार्च का सहारा लेना पड रहा है जाने वाले यात्री जो अब थक कर निढ़ाल है और हमसे पूंछते कि और कितना दूर है तो जय कुमार जी उन्हें अब बता रहे थे कि बस पहुँच गए आप लोग  सामने वाली चढाई चढते ही दिख जाएगा । अभी 4  किलोमीटर ही उतरे होगे कि पीतम जी ने जुआ गेर दिया । जो अब तक जयकुमार जी से मजे ले रहे थे अब जय कुमार जी उल्टे पीतम जी से मजे ले रहे थे हालात तो जय कुमार जी की भी ठीक नहीं है पर मै उन्हे अपने कंधे पर हाथ डालकर सहारा दे रहा था और अब यात्रा की जल्दी भी नहीं थी तो बीच बीच रूक आराम कर लेते थे और बिस्कुट नमकीन के साथ एनर्जी ड्रिंक भी ले रहे थे और यात्रा फिर से शुरू हो जाती हँसी मजाक और एक दूसरे की टाँग खिचायी के साथ,,,मेरे बाद अगर कोई सही था तो अमित कसाना जी जिन पर अब पीतम जी वाले बैग का बोझ भी आ गया था एक और सोलो ट्रैवलर जो एक 16-17 साल का लडका था वो भी लग गया कुछ देर में ही वो काफी फ्रेंडली हो गया 
तभी मेरा पैर पानी की निकासी के लिए बनायी गयी एक पतली नाली में गिरा और मुड गया मेरे लडखडाते ही जय कुमार जी ने मुझे संभाल लिया,अंधेरे की वजह से वो पतली नाली मुझे दिखाई ही नहीं दी थी, पैर के अँगूठे का नाख़ून थोडा ऊखड चुका था पर अलग नही हुआ था मैने 
तुरंत ही पास बह रहे बर्फीले पानी में पैर को डाल दिया और नाखून को थोडा उठाकर साफ कर लिया जिससे मिट्टी वगैरह बाहर आ जायें पानी  तो बर्फीला था तो दर्द मे थोडा आराम मिल गया अब मैने अपना रूमाल कसकर बांध लिया और चप्पल फिर से पहन ली फिर पैर टिकाकर देखा कि चल सकता हूँ या नही??हल्का दर्द था पर मै चल सकता था रात के 10 बजे होगे जब हम वापिस रामबाडा आ गये रात में मंदाकिनी की भयंकर गर्जना पुल पार करने पर डरा रही थी अब हम नदी पार कर फिर से पुराने वाले रास्ते पर आ गये थे और वापसी का आधा रास्ता तय कर चुके थे बस 6 किलोमीटर ही शेष था पर पीतम जी की अब ये हालत थी कि बीस कदम दूर पडी बेंच पर भी हम रूकने को कहते तो वो बीचो-बीच रास्ते में लेट जाते ,घोड़े चलने अब बंद थे और दिन मे घोड़े की वजह से जिस गंदगी पर नाक भौ सिकोड रहे थे अब उसी रास्ते में लेट जाते थे उनकी ये हालत देख कर जय कुमार जी अब उनसे दिन के सारे कटाक्ष का बदला ले रहे थे ।  साथ चल रहा लडका भी एक बेंच को बिस्तर बना चुका था  वो शायद सुबह ही गौरीकुण्ड पहुंचाना चाहता था ताकि होटल का किराया बच सके ।अब हम फिर से चार लोग रह गए थे एक तो रास्ते में ऊपर से गिरते झरने और साथ मे जगह-जगह लाइट गुम ,,अँधेरे में भय को और बढा देती पर हरपल कम होती दूरी जो पहले किलोमीटर देख देख कर तय हो रही थी वो अब मीटर देखकर तय हो रही थी जब एक किलोमीटर पूरा हो जाता तो अपार खुशी मिलती और स्टे जो पहले किलोमीटर पर हो रहा था अब एक किलोमीटर मे दो तीन बार हो रहा था अब एक युक्ति सुझी कि कयूँ ना कुछ जोश बढा कर और माइंड डाइव॔ट कर सबका ध्यान इस किलोमीटर से हटाया जायँ।
बस मैने कुछ ऊल जलूल बातों शुरू कर दी और और जोर जोर से भोलेनाथ के जयकारे लगाने शुरू कर दिये,,,,,ये जयकारे भी जरा हट के थे जो हमारे वर्तमान हालत पर मैने अभी घडे थे या ये कह सकते हो जो मेरे मन में आ रहा था मै वो बके जा रहा था, ,,,,,जैसे -----
मेरे भौले बाबा, औ तू कहाँ छुपा है
हो तू जल्दी आ जा,अब ना चला जारा
हो घुटने टूटगे , हो जान निकल गई  
हो अब तो आजा , हो दरश दिखा जा
मेरे भोले बाबा ओ तू कहाँ बसा है 

दूर दूर तक कोई नही था 12 बज गए थे इसलिये मैं जोर से गला फाड फाड के चिल्ला रहा था उनका सारा ध्यान मेरे ऊल जलूल नारों पर था अब वे कुछ समय के लिए किलोमीटर भूल गए थे नारो के रत्ती भर ही सही पर जोश में जी जान लगा रहे थे और तीन चार किलोमीटर जोश जोश में खींच गये पर ये युक्ति भी गौरीकुण्ड से दो किलोमीटर पहले फेल हो गई अब दो ही किलोमीटर तो था मंजिल दिख गयी थी तो थोडा-थोडा रेस्ट कर फिर मीटर निकालने लगे ,रात मे एक जगह पगडंडी पर खम्भे की लाइट के नीचे बैठे कुछ लोग हमे देखकर सामान उठा कर भागे हम थोडा दूर थे जब वहाँ आये कुछ नही था बस एक लडका खडा हमे देख रहा था  और हम उसे, माजरा समझ नहीं आया पर वो घोडे वाले थे या कंडी वाले या काम कर रहे मजदूर हमने पूछना उचित नही समझा और आगे बढ गये फिर एक बार वही घटना गौरीकुण्ड से कोई 500 मीटर पहले हुई इस बार भी हमने लोगों को बिजली के खंभे के नीचे से ऊपर अपनी टेंट की और भागते देखा । पास मे रास्ते के किनारे पडी बेंच पर मैने डेरा डाल दिया अमित जी मेरे साथ ही थे और पीतम व जय कुमार जी थोडा पीछे तभी पास वाले टेंट से एक लडका बाहर निकल कर आया और हमसे पूछा- कि आप यात्री है?? हमने कहा- हाँ ,
फिर  हमने पूछा कि ये लडके इस तरह से हमे देखकर सामान उठा कर भाग कयूँ गये??? तो उसने कोई साफ जवाब नही दिया, उसने कहा कि उन्हे लगा की शायद कमेटी के लोग आ गयें है ,,,,,, जिससे हमे ये अंदाजा लगा कि शायद वो लोग कुछ ऐसा कार्य कर रहे हैं जो यहाँ वर्जित हो ,,,,मसलन मीट या थकान मिटाने के लिए शराब का सेवन
खैर हमने अंदाजा ही लगाया था जो गलत भी हो सकता है अब जय कुमार और पीतम जी भी आ गये है गौरीकुण्ड सामने दिख ही रहा है दो मिनट सुस्ता कर फिर चल दिये, गौरीकुण्ड पहुँच गए हैं और रात का एक बज रहा है एक होटल की लाइट जली हुई है दरवाजा खटखटाते ही खुल गया ,कमरा ना अच्छा है ना बुरा हाईट तो सभी होटल के कमरों की कम है वैसे भी थके हुए हैं और 5 घंटे की ही तो बात है तो 500 मे रूम फाइनल है और बिस्तर पकड लिया है जय कुमार और पीतम जी बिस्तर पकडते ही चित है अब मै भी सो जाता हूँ कल सुबह त्रियुगी नारायण जी जो जाना है,,,,,,,,और अंत मे हाथ जोड़कर एक छोटी सी रिक्वेस्ट पहाडों में कहीं भी जाएँ पर कचरा ना फैलाये ।

विदा
2 सितम्बर 2019 गौरीकुण्ड ।🙏🙏

                                                   
                              

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